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समास | समास की परिभाषा, समास के भेद | Samas

समास 

समास दो शब्दों से मिलकर बना है। 
सम + आस 
समास का अर्थ होता है – संक्षेप

समास की परिभाषा Samaas ki Paribhasha समास किसे कहते है ?

दो या दो से अधिक शब्दों अथवा पदों के मेल को समास कहते है।
‘जब परस्पर सम्बन्ध रकने वाले दो या दो से अधिक शब्द अपने सम्बंधित शब्दों को छोड़कर एक साथ मिल जाते हैं, तब उनके मेल को समास कहते है।’ तथा ऐसे मिले हुए शब्दों को सामासिक पद कहते हैं। 
सामासिक शब्दों को अलग-अलग करना समास-विग्रह कहलाता है। जैसे दिन-रात एक सामासिक पद है जिसका समास-विग्रह दिन और रात होता है।

समास की विशेषताएँ 

  • समास में कम से कम दो पदों का योग होता है।
  • समास में समस्त होने वाले पदों का विभक्ति-प्रत्यय लुप्त हो जाता है।
  • वे दो या अधिक पद एक पद हो जाते हैं।
  • समस्त पदों के बीच संधि की स्थिति होने पर संधि आवश्यक होती है। 

समास के भेद

हिन्दी भाषा में समास छः प्रकार के होते है –

1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास 
3. कर्मधारय समास 
4. द्विगु समास 
5. द्वन्द समास 
6. बहुब्रीहि समास 

1. अव्ययीभाव समास अव्ययीभाव की परिभाषा

ऐसा समस्त जिसका पूर्व पद (प्रथम पद) अव्यय हो तथा वही पद प्रधान होता है, अव्ययीभाव समास कहलाता है। अव्ययभाव समास का दूसरा पद संज्ञा या कुछ भी हो सकता है। पहला पद दूसरे पद के साथ मिलकर समस्त पद को अव्यय कर देता है।
जिस समास का प्रथम पद प्रधान होता है व जिसका पहला पद या पूरा पद अव्यय होता है।

अव्यय –
वे शब्द जो लिंग, वचन, काल, कारक के अनुसार नहीं बदलते है, अव्यय कहलाते है।
उदाहरण शब्दों के उदाहरण –
प्रतिदिन – प्रत्येक दिन, हर दिन, दिन-दिन, यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार, यथाक्रम, बारम्बारता, भरपेट, आमरण, आजन्म, हाथो-हाथ, पहले-पहल।  

अव्ययीभाव समास के उदाहरण 
भरपेट पेट भरकर  यथाशक्ति शक्ति के अनुसार
यथायोग्य योग्यता के अनुसार  आजन्म जन्म से 
प्रत्येक एक-एक बेकाम बिना काम के 
अत्युत्तम उत्तम से अधिक  अभूतपूर्व  जो पूर्व में न हुआ 
प्रत्यारोप  आरोप के बदले आरोप  प्रतिक्रिया  क्रिया के विपरीत क्रिया 
अत्यंत  अधिक से भी अधिक  रातोंरात  रात ही रात में 
दिनोंदिन  दिन ही दिन में  अनजाने  जाने बिना 
निडर  बिना डर के  दिनभर  पुरे दिन 
एकाएक  एक के बाद एक  प्रतिनियुक्ति  नियमित नियुक्ति के बदले नियुक्ति 
घर-घर  हर घर  प्रतिपल  हर पल 

2. तत्पुरुष समास तत्पुरुष समास की परिभाषा

ऐसा समास जिसका दूसरा पद प्रधान होता है तथा पहला पद संज्ञा या विशेषण होता है, जो प्रथम पद के साथ विभक्ति का लोप दर्शाता है, तथा कर्ता व सम्बोधन को छोड़कर शेष कारको की विभक्तियाँ दोनों के बीच में लुप्त रहती है, तत्पुरुष कहलाता है। तत्पुरुष समास में साधारणतः प्रथम पद विशेषण होता है तथा दूसरा पद विशेष्य होता है। दूसरे पद के विशेष्य होने के कारण ही इस समास में उसकी प्रधानता होती है।

तत्पुरुष समास के भेद

जिस तत्पुरुष समास में कर्त्ताकारक की प्रथम विभक्ति छिपी रहती है, उसे ‘समानाधिकरण तत्पुरुष’ अथवा ‘कर्मधारय समास’ कहते है। जिस कारक की विभक्ति लुप्त रहती है उसी के आधार पर वह समास कहलाता है।
तत्पुरुष समास छः प्रकार के होते है। 

1. कर्म तत्पुरुष समास (को)
कर्म तत्पुरुष समास की परिभाषा – इस समास में कर्म कारक के विभक्ति चिह्न ‘को’ का लोप होता है, अतः इस समास को कर्म तत्पुरुष समास कहते है।
कर्म तत्पुरुष समास के उदाहरण 

यश प्राप्त यश को प्राप्त  ग्रामगात ग्राम को गत 
आशातीत  आशा को अतीत  गृहागत गृह को आगत
कष्टापन्न कष्ट को आपन देश गत  देश को गत 
चिड़ीमार  चिड़ी को मारने वाला  शरणागत  शरण को आया हुआ 
सर्वज्ञ  सभी को जानने वाला  गगनचुम्बी  गगन को चूमने वाला 
चित्तचोर चित्त को चोरने वाला  वयप्राप्त वय को प्राप्त 
चक्रधर  चक्र को धारण करने वाला  जितेन्द्रिय  इन्द्रियों को जीतने वाला 
स्वर्गप्राप्त स्वर्ग को प्राप्त  रोजगारोन्मुख  रोजगार को उन्मुख 

2. करण तत्पुरुष समास (से, द्वारा)
करण तत्पुरुष समास की परिभाषा – इस समास में करण कारक के विभक्ति चिह्न ‘से’ या ‘द्वारा’ का लोप होता है, अतः इस समास को करण तत्पुरुष समास कहते है।
करण तत्पुरुष समास के उदाहरण 

वाग्युद्ध  वाक् से युद्ध  मुँह माँगा  मुहँ से माँगा 
आचार-कुशल  आचार से कुशल नीतियुक्त नीति से युक्त 
तुलसीकृत  तुलसी द्वारा कृत  हस्तलिखित  हस्त से लिखित 
सूरकृत  सूर द्वारा कृत  मुँहमाँगा मुँह से माँगा 
ईश्वर प्रदत्त  ईश्वर से प्रदत्त  शराहत शर से आहत
मनमाना  मन से माना  आंखोंदेखा  आँखों से देखा 
वचनबद्ध  वचन से बद्ध मेघाछन्न मेघ से आच्छन्न 
शोकाकुल  शोक से आकुल  श्रमसाध्य  श्रम से साध्य 
रोगातुर  रोग से आतुर  मदमत्त  मद से मत्त
कपडछना कपडे से छना हुआ  मदमाता  मद से माता 
आकालपीड़ित आकाल से पीड़ित  अश्रुपूर्ण  अश्रु से पूर्ण 

3. सम्प्रदान तत्पुरुष समास (के लिए) करण तत्पुरुष समास की परिभाषा
इस समास में सम्प्रदान कारक के विभक्ति चिह्न ‘के लिए’ का लोप होता है, अतः इस समास को सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते है।
सम्प्रदान तत्पुरुष समास के उदाहरण

मनचाहा मन से चाहा तुलसीकृत तुलसी से कृत
रत्नजड़ित रत्न से जड़ित देशभक्ति  देश के लिए भक्ति 
समाचार पत्र समाचार के लिए पत्र छात्रावास  छात्रों के लिए आवास 
गुरुदक्षिणा  गुरु के लिए दक्षिणा  सत्याग्रह  सत्य के लिए आग्रह 
विद्यालय  विद्या के लिया आलय हिसाब-बही हिसाब के लिए बही 
राहखर्च  राह के लिए खर्च  पाठशाला  पाठ के लिए शाला 
रसोईघर  रसोई के लिए घर  परीक्षा भवन  परीक्षा के लिए भवन 
हवन सामग्री  हवन के लिए सामग्री  हथकड़ी  हाथ के लिए कड़ी 
कृष्णार्पण  कृष्ण के लिए अर्पण  आवेदन-पत्र आवेदन के लिए पत्र 
सभाभवन  सभा के लिए भवन  विद्यामंदिर  विद्या के लिए मंदिर 
 

4. अपादान तत्पुरुष समास (से, अलग करने) अपादान तत्पुरुष समास की परिभाषा
इस समास में अपादान कारक के विभक्ति चिह्न ‘से’ (अलग होने के अर्थ में) का लोप होता है, अतः इस समास को अपादान तत्पुरुष समास कहते है।
अपादान तत्पुरुष समास के उदाहरण

देश निकला देश से निकला आकाश पतित आकाश से पतित
दूरागत दूर से आगत  जन्मान्ध जन्म से अन्धा
कामचोर  काम से जी चुराने वाला  धनहीन  धन से हीन
गुण रहित  गुण से रहित  सेवामुक्त  सेवा से मुक्त 
पदच्युत पद से च्युत  रणविमुख राण से विमुख 
ऋणमुक्त  ऋण से मुक्त  पथभ्रष्ट  पथ से भ्रष्ट 
कर्तव्यविमुख  कर्तव्य से विमुख  भयभीत  भय से भीत (डरा)
धर्मभ्रष्ट  धर्म से भ्रष्ट  धर्मविमुख  धर्म से विमुख

5. सम्बन्ध तत्पुरुष समास (का, के, की) सम्बन्ध तत्पुरुष समास की परिभाषा
इस समास में सम्बन्ध कारक के विभक्ति चिह्न ‘का’, ‘के’, ‘की’ आदि का लोप होता है, अतः इस समास को सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते है।
सम्बन्ध तत्पुरुष समास के उदाहरण

गंगाजल गंगा का जल  घुड़दौड़ घोड़ों की दौड़
ग्रामोत्थान  ग्राम का उत्थान  अक्षांश  अक्ष का अंश 
दयासागर  दया का सागर  गृहस्वामी  गृह का स्वामी 
कर्मयोग  कर्म का योग  विद्याभ्यास  विषय का अभ्यास 
सेनापति  सेना का पति  माधव  माँ का धव 
राजप्रासाद  राजा का प्रासाद  जीवनसाथी  जीवन का साथी 
प्रसंगानुकूल  प्रसंग के अनुकूल  भारतवासी  भारत का वासी 
कर्मयोग  कर्म का योग  माखनचोर  माखन का चोर 
राष्ट्रपिता  राष्ट्र का पिता  रक्तदान  रक्त का दान 
पराधीन  पर के अधीन  राजदरबार  राजा का दरबार 
लोकनायक  लोक का नायक  राजकुमार  राजा का कुमार 

6. अधिकरण तत्पुरुष समास (में, पे, पर) अधिकरण तत्पुरुष समास की परिभाषा
इस समास में अधिकरण कारक के विभक्ति चिह्न ‘में’, ‘पे ‘, ‘पर’ आदि का लोप होता है, अतः इस समास को अधिकरण तत्पुरुष समास कहते है।
सम्बन्ध तत्पुरुष समास के उदाहरण

वनवास वन में वास आनन्दमग्न आनंद  में मग्न
स्नेहमग्न  स्नेह में मग्न गृह प्रवेश  गृह में प्रवेश 
कविराज  कवियों में राजा  दानवीर  दान देने में वीर 
सर्वोत्तम  सर्व में उत्तम  रणवीर  रण में वीर 
आत्मविश्वास  आत्मा पर विश्वास वाग्वीर  वाक् में वीर 
आपबीती  अपने पर बीती  मुनिश्रेष्ठ  मुनियों में श्रेष्ठ 
रेलगाड़ी  रेल पर चलने वाली गाड़ी  हरफनमौला  हर फन में मौला
वनवास  वन में वास  लोकप्रिय  लोक में प्रिय 
नीतिनिपुण  नीति में निपुण दहीबड़ा  दही में डूबा हुआ बड़ा 
पुरुषोत्तम  पुरुषों में उत्तम  सिरदर्द  सिर में दर्द 
जल मग्न  जल में मग्न  देशाटन  देश में अटन
 

3. कर्मधारय समास कर्मधारय समास की परिभाषा
पद का उत्तर पद प्रधान हो तथा पूर्व पद और उत्तर पद उपमान-उपमेय अथवा विशेषण-विशेष्य से सम्बंधित हो, वह कर्मधारय समास कहलाता है। 

उपमेय – जिसका वर्णन है।
उपमान – जिससे उपमेय की तुलना हो।

कर्मधारय समास के भेद

कर्मधारय समास चार प्रकार के होते है – 
(i) विशेषण पूर्व पद : इस प्रकार के कर्मधारय समास में पहला पद विशेषण होता है।
उदाहरण –

परम-ईश्वर  परम है जो ईश्वर  नील गाय  नीली है जो गाय 
प्रियसखा  प्रिय है जो सखा  पीताम्बर  पीला है जो कपड़ा
अधपका  आधा है जो पका  महादेव  महान है जो देव 
महात्मा  महान है जो आत्मा  नीलकमल  नीला है जो कमल 
का पुरुष  कायर है जो पुरुष  दीर्घायु  दीर्घ है जिसकी आयु 
महासागर  महान है जो सागर  कालीमिर्च  काली है जो मिर्च 
विद्याधन  विद्यारुपी धन  कुपुत्र  कुत्सित है जो पुत्र 
परकटा पर हैं कटे जिसके महाजन  महान है जो जन

(ii) उपमान कर्मधारय समास : इस प्रकार के कर्मधारय समास में उपमान वाचक पद का उपमेय वाचक पद के साथ समास होता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों ही पद क्योंकि एक ही कर्त्ता विभक्ति, वचन और लिंग के होते है, इसलिए समस्त पद कर्मधारय -लक्षण का होता है।
उदाहरण –

विद्युतचंचला  विद्युत जैसी चंचलता  मुखचन्द्र  चंद्र रूपी मुख 
नरसिंह  सिंह रूपी नर  चरण कमल  कमल रूपी चरण 
क्रोधाग्नि  अग्नि के समान क्रोध  मृगनयनी  मृग के समान नयन 
वज्रदेह  वज्र के समान देह  देहलता  देहरूपी लता 
कनकलता  कनक के समान लता  विद्याधन  विद्या रूपी धन 
ग्रन्थरत्न  रत्न रूपी ग्रन्थ करकमल  कमल रूपी कर 
विद्याधन  विद्यारुपी धन  कुपुत्र  कुत्सित है जो पुत्र 
परकटा पर हैं कटे जिसके महाजन  महान है जो जन
 
4. द्विगु समास

द्विगु समास की परिभाषा – जिस समास का पूर्वपद या पहला पद संख्यावाचक हो और जिससे किसी समूह का बोध होता हो, उसे द्विगु समास कहते है।

उदाहरण

पंचवटी -पाँच वटों का समाहार, 
चौराहा – चार राहो का समाहार, 
सप्तऋषि – सौ का समाहार, 
पक्षद्वय – दो पक्षो का समूह, 
नौ लखा – नौ लाख वाला, 
नवनिधि – नौ निधियों (खजानो) का समाहार, 
सप्ताह – सप्त अहो (सात दिनों) का समूह, 
नवरात्र – नौ रात्रियों का समूह, 
अठन्नी – आठ आनों का समूह, 
दुगुना – दोगुना/द्विगुणित, 
सहस्त्रबाहु – हजार भुजाओ का समूह।
 
5. द्वंद्व समास
द्वंद्व समास की परिभाषा – जिस समाज मे दोनों पद प्रधान हो तथा दोनों के बीच ‘और’ व ‘या’ का प्रयोग होता है।
उदाहरण

पाप पूण्य – पाप और पुण्य, 
सुख दुख – सुख और दुख, 
ऊँच नीच – ऊँच और नीच, 
कृष्णार्जुन – कृष्ण और अर्जुन, 
सीता राम – सीता और राम, 
यशापयश – यश और अपयश।
 
6. बहुब्रीहि समास
बहुब्रीहि समास की परिभाषा – जिस समाज मे दोनों पद प्रधान न हो तथा दोनों मिलकर किसी तीसरे पद का विशेषण बने, बहुब्रीहि समास कहलाता है।
उदाहरण
दशानन – दश है आनन जिसके अर्थात (रावण), 
लंबोदर – लंबा है उदर जिसका अर्थात (गणेश), 
नील कंठ – नीला है कंठ जिसका अर्थात (शिव), 
पवन पुत्र – पवन क् पुत्र है जो अर्थात (हनुमान), 
पीताम्बर – पीला है अम्बर जिसका अर्थात (विष्णु)।

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