प्रत्यय | प्रत्यय की परिभाषा, प्रत्यय के भेद | अतिमहत्वपूर्ण प्रत्यय | Pratayy
प्रत्यय
1. कृदन्त/कृत्त प्रत्यय
2. तद्वित प्रत्यय
1. कृदन्त प्रत्यय – वे प्रत्यय जो धातुओं अर्थात क्रिया पद के मूल रूप के साथ लगकर नये शब्द का निर्माण करते है, कृदन्त या कृत प्रत्यय कहलाते है।
कृदन्त/कृत्त प्रत्यय के प्रकार
(अ) कर्त्त वाचक
वे प्रत्यय जो कर्तावाचक शब्द बनाते है, कर्त्त वाचक प्रत्यय कहलाते है।
(ब) कर्मवाचक
वे प्रत्यय जो क्रिया के अंत मे लगकर कर्म के अर्थ को प्रकट करते है, कर्मवाचक प्रत्यय कहलाते है।
(स) करणवाचक
वे प्रत्यय जो क्रिया के कारण को बताते है, करणवाचक प्रत्यय कहलाते है।
(द) भाववाचक
वे प्रत्यय जो क्रिया से भाववाचक संज्ञा का निर्माण करते है, भाववाचक प्रत्यय कहलाते है।
(य) क्रिया बोधक
वे प्रत्यय जो क्रिया का ही बोध करते है, क्रिया बोधक प्रत्यय कहलाते है।
(2) तद्वित प्रत्यय
तद्वित प्रत्यय के प्रकार-
(अ) कर्त्तृवाचक तद्वित प्रत्यय
वे प्रत्यय जो किसी संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्द के साथ जुडक़र कर्त्तावाचक शब्द का निर्माण करता है, कर्त्तृवाचक प्रत्यय कहलाते है।
जैसे – आर – लौहार, सुनार
इया – रसिया
ई – तेली
एरा – घसेरा
(ब) भाववाचक तद्वित प्रत्यय
वे प्रत्यय जो संज्ञा, सर्वनाम व विशेषण के साथ जुड़कर भाववाचक संज्ञा बनाते है, भाववाचक तद्वित प्रत्यय कहलाते है।
जैसे – आई – बुराई
आपा – बुढापा
आस – खटास, मिठास
आहट – कड़वाहट
इमा – लालिमा
ई – गर्मी
ता – सुंदरता, मूर्खता, मनुष्यता
त्व – मनुष्यत्व, पशुत्व
पन – बचपन, लड़कपन, छुटपन
(स) संबंधवाचक तद्वित प्रत्यय
इन प्रत्ययों के लगने से संबंधवाचक शब्दो की रचना होती है।
जैसे – चचेरा, ममेरा
इक – शारीरिक
आलू – दयालु, श्रद्धालु
इल – फलित
ईला – रसीला, रंगीला
ईय – भारतीय
ऐरा – विषैला
तर – कठिनतर
मान – बुद्धिमान
वत् – पुत्रवत, मातृवत
हरा – इकहरा
जा – भतीजा, भानजा
आई – ननदोई
(य) अप्रत्ययवाचक तद्वित प्रत्यय
संस्कृत के प्रभाव के कारण संज्ञा के साथ अप्रत्ययवाचक प्रत्यय लगाने से सन्तान का बोध होता है।
जैसे – अ – वासुदेव, राघव, मानव
ई – दाशरथि, वाल्मीकि, सौमित्रि
एय – कौन्तेय, गांगेय, भागिनेय
य – दैत्य, आदित्य
(र) ऊन्तावाचक तद्वित प्रत्यय
संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण के साथ प्रयुक्त होकर ये उनके लघुता सूचक शब्दों का निर्माण करते है।
जैसे – इया – खटिया, लुटिया, डिबिया
ई – मंडली, टोकरी, पहाड़ी, घंटी
ओला – खटोला, सपोला
(व) स्त्रीबोधक तद्वित प्रत्यय
वे प्रत्यय जो संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण के साथ लगकर उनके स्त्रीलिंग का बोध करते है, स्त्रीबोधक तद्वित प्रत्यय कहलाते है।
जैसे -आ – सुता, छात्रा, अनुजा
आइन – ठकुराइन, मुखियाइन
आनी – देवरानी, सेठानी, नौकरानी
इन – बाघिन, मालिन
नी – शेरनी, मोरनी
ऊर्दू के प्रत्यय
गर – जादूगर, बाजीगर, कारीगर, सौदागर
ची – अफीमची, तबलची, बाबरची, तोपची
नाक – शर्मनाक, दर्दनाक
दार – दुकानदार, मालदार, हिस्सेदार, थानेदार
आबाद – अहमदाबाद, इलाहबाद, हैदराबाद
इंद्रा – परिंदा, बाशिंदा, शर्मिंदा, चुनिंदा
ईश – फरमाइश, पैदाइश, रंजिश
इस्तान – कब्रिस्तान, अफगानिस्तान
खोर – हरामखोर, घूसखोर, जमाखोर, रिश्वतखोर
गाह – ईदगाह, बंदरगाह, दरगाह, आरामगाह
गार – रोज़गार, मददगार, यादगार, गुनहगार
गीर – राहगीर, जहाँगीर
गी – दीवानगी, ताज़गी, सादगी
गिरी – कुलीगिरी, मुंशीगिरी
नवीस – नक्शानवीस, अर्जिनवीस
नामा – अकबरनामा, सुलहनामा, इकरारनामा
बन्द – हथियारबंद, नज़रबंद, मोहरबंद
बाज़ – नशेबाज, चालबाज़, दगाबाज़
मंद – अकलमंद, जरूरतमंद, एहसानमंद
साज – जिल्दसाज, घड़ीसाज, जालसाज
* नोट –
प्रश्न – इक प्रत्यय की क्या विशेषताएं है?
कई बार प्रत्यय लगने के पहले, बीच ने या अन्त में प्रत्यय लगने से स्वरों में परिवर्तन हो जाता है।
जैसे
इक = समाज – समाजिक, इतिहास – ऐतिहासिक, नीति – नैतिक, पुराण – पौराणिक, भूगोल – भौगोलिक, लोक – लौकिक
य = मधुर – माधुर्य, दिति – दैत्य, सुन्दर – सौन्दर्य, शूर – शोर्य
इ = दशरथ – दाशरथि, सुमित्रा – सौमित्रि
एय = गंगा – गांगेय, कुन्ती – कौन्तेय
आइन = ठाकुर – ठकुराइन, मुंशी – मुंशीआइन
इनी = हाथी – हथिनी
एरा = चाचा – चचेरा, लूटना – लुटेरा
आई = साफ – सफाई, मीठा – मिठाई, बौना – बुवाई
अक्कड़ = भूलना – भुलक्कड़, पीना – पियक्कड़
आरी = पूजना – पुजारी, भीख – भिखारी
ऊटा = काला – कलूटा
आव = खिचना – खिंचाव, घूमना – घुमाव
आस = मीठा – मिठास
आपा = बुढ़ा – बुढ़ापा
आर = लोहा – लुहार, सोना – सुनार
इया = चूहा – चुहिया, लौटा – लुटिया
बाड़ी = फूल – फुलबाड़ी
पन = छोटा – छुटपन, बच्चा – बचपन, लड़का – लड़कपन
हारा = मनी – मनिहारा
एल = नाक – नकेल
आवना = लोभ – लुभावना