Different Types of Plants and Its Parts | पौधों के प्रकार एवं विभिन्न भाग
पौधे – जो पेड़- पौधें हमारे आस-पास दिखाई देते है, उनमें से कुछ पौधे छोटे होते है और कुछ विशालकाय जबकि कुछ जमीन पर केवल हरे धब्बों के रूप में दिखाई देते है। कुछ पौधे तो हमें ऐसे दिखाई देते है जो किसी आधार के सहारे ऊपर की और बढ़ते हैं।
आज इस अध्याय में हम पेड़- पौधों के प्रकार और इनके विभिन्न भागों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
पौधों को मुख्यतः तीन प्रकार से अलग-अलग समूहों में बांटा जा सकता है –
(1) आकार के आधार पर
(2) आयु के आधार पर
(3) आरोहण के आधार पर
(1) आकार के आधार पर – आकार के आधार पर पौधे तीन प्रकार के होते है –
(a) शाक (b) झाड़ी या क्षुप (c) वृक्ष
(a) शाक –
- इनकी अधिकतम ऊंचाई 1 मीटर के लगभग होती है।
- शाक तना बहुत ही कोमल व हरा होता है।
- शाक में ज्यादा शाखाएँ नहीं होती है।
उदाहरण – गेहूँ, तुलसी, सोप, मिर्च, हल्दी आदि
(b) झाड़ी या क्षुप –
- कुछ पौधों में शाखाएँ तने के आधार के समीप से निकलती हैं।
- तना कठोर होता है परन्तु अधिक मोटा नहीं होता हैं।
- इनकी अधिकतम ऊँचाई 5-6 मीटर तक होती है।
- तने का रंग हल्का भूरा होता है तथा मुख्य तने से कई शाखाएँ निकली होती है।
उदाहरण – गुलाब, बाबुल, बेर, केर, मेंहदी आदि
(c) वृक्ष –
- कुछ पौधे बहुत ऊँचे होते है।
- इनका तना सुदृढ़, छालयुक्त एवं गहरे रंग का होता है।
- इनकी ऊँचाई कई मीटर तक होती है।
- ज्यादातर वृक्ष ग्रीष्म एवं वसंत ऋतु में पुष्पित होते हैं।
उदाहरण – नीम, आम, बबूल, बरगद आदि।
(2) आयु के आधार पर – आयु के आधार पर पौधे मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं –
(a) एकवर्षीय पौधे (b) द्विवर्षीय पौधे (c) बहुवर्षीय पौधे
(a) एकवर्षीय पौधे – ऐसे पौधे जिनका जीवन काल केवल एक वर्ष का होता है, एकवर्षीय पौधे कहलाते हैं।
उदाहरण – सरसों, मक्का, ज्वर, बाजरा आदि
(b) द्विवर्षीय पौधे – ऐसे पौधे जिनका जीवन काल दो वर्षों का होता है, द्विवर्षीय पौधे कहलाते हैं।
उदाहरण – प्याज़, गाजर आदि
(c) बहुवर्षीय पौधे – ऐसे पौधे जिनका जीवन काल 2 वर्ष से अधिक का होता है, बहुवर्षीय पौधे कहलाते हैं।
उदाहरण – नीम, आम, बरगद, शीशम आदि
(3) आरोहण के आधार पर – पौधे में किस और वृद्धि होगी इस आधार पर पौधे दो प्रकार के होते हैं –
(a) आरोही पौधे – कुछ पौधे किसी अन्य पौधों या अन्य आधार के सहारे ऊपर की ओर चढ़ जाते हैं, जिन्हे आरोही पौधे कहते हैं।
इनमें धागे सदृश्य कुंडलित संरचना का निर्माण होता है, जिन्हें प्रतान कहते है। ये प्रतान पत्ती, पर्णवृन्त या तने का रूपांतरण होता है।
उदाहरण – मटर, तुरई, ककड़ी, करेला आदि
(b) अवरोही या विसर्पी/वल्लरी पौधे – कमजोर तने वाले पौधे, जो स्वयं सीधे खड़े नहीं हो सकते है ओर ये भूमि पर फ़ैल कर बढ़ते है, विसर्पी या वल्लरी पौधे कहलाते हैं।
उदाहरण – तरबूज, खरबूजा, कद्दू आदि
पौधे के विभिन्न भाग
यदि हम किसी पौधे का ध्यानपूर्वक अवलोकन करें तो यह मुख्यतः 5 भागों में बंटा होता है –
(a) जड़ (b) तना (c) पत्ती (d) फूल (e) फल
(a) जड़ – पौधे का वह भाग जो भूमि में धंसा रहता है, जड़ कहलाता है।
पौधे के भूमिगत भाग को मूलतंत्र या अवरोही भाग कहते हैं तथा पौधे के बाहरी या ऊपरी भाग को आरोही या प्ररोह कहते है।
जड़ों के प्रकार – जड़ें मुख्यतः दो प्रकार की होती है –
(a) मूसला मूल – ऐसी जड़ जो मुलांकुर से विकसित होती है, मूसला मूल कहलाती है।
- इस प्रकार की मूल के मध्य में एक मुख्य मूल होती है। जिसके पार्श्व में अनेक जड़े निकली रहती है।
- मूसला मूल लगभग सीधी और मोती होती है। इसकी मोटाई नीचे पहुँचते-पहुँचते कम हो जाती है।
उदाहरण – मटर, नीम, आम, टमाटर, सरसों (द्विबीजपत्री पादप)
(b) रेशेदार मूल व झकड़ा मूल – इस प्रकार की मूल में प्राथमिक या मुख्य मूल अल्पजीवी होती है तथा इसके स्थान पर अनेक पतली-पतली मूलें निकल आती है, जिन्हें रेशेदार मूल कहते है।
उदाहरण – गणना, गेहूँ, चावल, मक्का, प्याज, बाजरा (एकबीजपत्री पादप)
जड़ों के कार्य
- जड़ें पौधों को मृदा के साथ मजबूती से बांधे रखती है।
- जड़ें भूमि से जल व खनिज लवणों का अवशोषण करती है।
- कुछ पौधों की जड़ें भोजन का संग्रहण का कार्य भी करती है। जैसे – गाजर, मूली, शलजम, टेपियोका, शकरकंद आदि
- कुछ पौधों की जड़ें जनन का कार्य भी करती है। जैसे – डहेलिया
(b) तना – तना भी पौधे का महत्वपूर्ण भाग होता है। तने में पत्तियाँ, शाखाएँ, कली, फूल और फल लगते हैं। शाक के तने हरे व कमजोर, झाड़ी के तने भूरे व कठोर तथा वृक्ष के तने बहुत मोटे व कठोर होते हैं।
तनों के प्रकार – तने मुख्यतः तीन प्रकार के होते है –
(i) भूमिगत तना (ii) वायवीय तना (iii) अर्द्धवायवीय तना
(i) भूमिगत तना – ऐसे तने जो भूमि के अंदर पाए जाते है, भूमिगत तने कहलाते है। तने के भूमिगत भाग भोजन संग्रहण, कायिक प्रजनन आदि के लिए रूपांतरित हो जाते है।
उदाहरण – आलू, प्याज, अरबी, अदरक आदि
(ii) वायवीय तना – भूमि के बाहर निकले तने को वायवीय तना कहते है।
उदाहरण – रतालू, रसकस, शतावर, अंगूर, नींबू, बैर, झाड़ी आदि
(iii) अर्द्ध वायवीय तना – इसमें तने की शाखाएं भूमि की सतह के ऊपर, समान्तर रूप से वृद्धि करती है।
उदाहरण – पोदीना, गुलदावरी, स्ट्राबेरी, दुब, घास, जलकुम्भी आदि
तने के कार्य
- तना पौधे को आधार प्रदान करता है, उसे सीधा खड़ा रखने में सहायता करता है।
- तने भोजन संग्रहण का कार्य भी करते है। जैसे – आलू, अदरक, हल्दी, अरबी आदि
- तना, जड़ों से जल व खनिज लवणों का अवशोषण करके पौधे के विभिन्न भागों तक पहुँचाने का कार्य करता है।
- मरुस्थलीय क्षेत्रों में तना जल का संग्रहण करने का कार्य करता है। जैसे – थूर
- कुछ पौधों के तने कायिक जनन भी करते है। जैसे – गुलाब, चमेली
- कुछ पौधों के हरे तने क्लोरोफिल की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण भी करते हैं। जैसे – शतावरी
पत्ती : हम अपने आस-आप विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे देखते हैं, जिनकी पत्तियों की बनावट में काफी भिन्नता पायी जाती है। पत्ती तने से पर्णवृन्त के द्वारा जुड़ी होती है। पत्ती के चपटे हरे भाग को पर्ण फलक कहते है।
पत्ती में जो रेखिये संरचना पायी जाती है उसे शिरा कहते है। मध्य वाली मोती शिरा को मध्य शिरा कहा जाता है। इन शिराओं के द्वारा जो डिजाइन बना होता है, उसे शिरा विन्यास कहते है।
शिरा विन्यास के आधार पर पत्तियाँ दो प्रकार की होती है –
(i) जालिका रूपी शिरा विन्यास (ii) समान्तर शिरा विन्यास
(i) जालिका रूपी शिरा विन्यास – यदि शिरा-विन्यास मध्य शिरा के दोनों ओर जाल जैसा होता है, तो यह जालिका रूपी शिरा विन्यास कहलाता है।
उदाहरण – आम, नीम, पीपल, बरगद आदि
(ii) समान्तर शिरा विन्यास – ऐसे पौधे जिनकी पत्तियों में शिराएँ एक-दूसरे के समान्तर होती है, ऐसे शिरा विन्यास को समान्तर शिरा विन्यास कहते है।
उदाहरण – घास, केला आदि
पत्तियों के कार्य
- पत्तियाँ वाष्पोत्सर्जन करने में सहायक है।
वाष्पोत्सर्जन – पौधों में उपस्थित अवांछित जल, पत्तियों में उपस्थित रंध्रों के द्वारा वाष्प के रूप में बाहर छोड़ा जाता है, यह क्रिया वाष्पोत्सर्जन कहलाती है। वाष्पोत्सर्जन के द्वारा पौधे का ताप नियमन किया जाता है। - पत्तियाँ मंड का संश्लेषण करती है।
- पत्तियाँ प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा पौधे के लिए भोजन का निर्माण करती है।
प्रकाश संश्लेषण – पौधें की क्लोरोफिल युक्त पत्तियाँ प्रकाश की उपस्थिति में जल व वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करके भोजन संश्लेषण करती है, इस क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते है। इस क्रिया के फलस्वरूप ग्लूकोस बनता है तथा ऑक्सीजन ओर जल को वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है। प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा निर्मित अंतिम उत्पाद स्टार्च है। स्टार्च ग्लूकोज का एक प्रकार है। - पत्तियों की सतह पर कई रंध्र पाए जाते है। इन रंध्रों की सहायता से पत्तियां गैसों का आदान-प्रदान करती है।
पुष्प : पुष्प पौधे के जननांग होते है। या पौधों के महत्वपूर्ण भाग होते है। फूल कई रंग के होते है। जैसे – लाल, नीला, सफ़ेद, पीला आदि
पुष्प के विभिन्न भाग : पुष्प के निम्न भाग होते है
(i) बाह्यदल – यह पुष्प का सबसे बाहरी भाग होता है। सामान्यतः यह हरे रंग का होता है। यह फूल के नीचे से दिखाई देता है।
(ii) दलपुंज (पंखुड़ियां) – बाह्यदल के ठीक अंदर का भाग दलपुंज कहलाता है। इन्हें सामान्य भाषा में पंखुड़ियां भी कहते है। यह विभिन्न रंगो की होती है।
(iii) पुमंग – इनमे नर जनन अंग पुंकेसर होता है। यह एक परागकोष व एक फिलामेंट से बना होता है।
(iv) जायांग – फूल का सबसे भीतरी भाग जायांग होता है। इसमें स्त्रीकेसर मादा जनन अंग होता है।
(v) वर्तिकाग्र – यह कार्पल का सबसे ऊपर वाला फूला हुआ भाग होता है। इसके चिपचिपा होने के कारण परागकण इसपर आकर चिपक जाते है।
(vi) वर्तिका नली – यह एक लम्बी पतली नली होती है। बीजाण्ड तक पहुँचने के लिए परागनली इसमें से होकर गुजरती है।
(vii) अंडाशय – यह कार्पल का सबसे नीचे वाला फूला भाग होता है। इसमें बीजाण्ड उपस्थित होते है।
निषेचन के पश्चात् यह फल में तथा बीजाण्ड बीजों में विकसित होता है।
परागण – परागकोष से निकलकर वर्तिकाग्र पर परागकणों के पहुँचने की प्रक्रिया परागकण कहलाती है। यह दो प्रकार की होती है –
स्वपरागण – जब किसी पुष्प के परागकोष से परागकण निकलकर उसी पुष्प की वर्तिकाग्र पर चिपक जाता है तो इस प्रक्रिया को स्वपरागण कहते है।
उदाहरण- मटर, टमाटर आदि
परपरागण – जब पुष्प के परागकोष से परागकण निकलकर किसी दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुँचता है तो इस पर परागण कहते है।
उदाहरण – गुलाब, पोपी आदि
फल – फल का निर्माण अंडाशय में होता है। परिपक्व अंडाशय को फल कहा जाता है।
फल दो प्रकार के होते है –
(i) सत्य फल – यदि फल का निर्माण केवल अंडाशय से हो होता है, तो सत्यफल कहलाते है।
उदाहरण – आम
(ii) असत्य फल – यदि फल का निर्माण अंडाशय के साथ-साथ पुष्प के अन्य भाग भी फल बनाने में भाग लेते है, उन्हें सत्यफल या आभासी फल कहते है।
उदाहरण – नाशपाती।