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Nutrition in Plants in Hindi | पादपों में पोषण

Nutrition in Plants in Hindi | पादपों में पोषण सभी जीवों को भोजन की आवश्यकता होती है। पादप (पौधे) अपना भोजन स्वयं बना सकते हैं, परन्तु मनुष्य एवं अन्य कोई भी दूसरा प्राणी अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकता। मनुष्य एवं अन्य कोई भी दूसरा प्राणी भोजन के लिए सीधे या तो पादप को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं अथवा पादप या पादप-उत्पाद खाने वाले जीवों को अपना भोजन बनाते हैं। अतः मानव तथा अन्य प्राणी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से पादपों पर निर्भर करते हैं। 

Nutrition in Plants in Hindi | पादपों में पोषण

पोषक (Nutrient)

भोजन के वे घटक जो हमारे शरीर के लिए आवश्यक होते है, पोषक कहलाते है। जैसे – कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज लवण भोजन के घटक है, जो पोषक कहलाते हैं।

नोट

  • केवल पादप ही ऐसे जिव हैं जो जल, कार्बन डाइऑक्साइड एवं खनिज की सहायता से अपना भोजन स्वयं बनाते है।
  • पोषक पदार्थ सजीवों की शारीरिक संरचना, वृद्धि तथा क्षतिग्रस्त भागों के रखरखाव के लिए समर्थ बनाते है तथा विभिन्न जैव प्रक्रमों के लिए आवश्यक ऊर्जा भी प्रदान करते है।

पोषण (Nutrition)

सजीवों के द्वारा भोजन ग्रहण करने एवं इसके उपयोग की विधि को पोषण कहते है।

पोषण की विधियाँ Methods of Nutrition

पोषण की दो विधियाँ प्रमुख है –

(i) स्वपोषण (ii) विषमपोषण 

(i) स्वपोषण Autotrophic

पोषण की वह विधि जिसमे जीव अपना भोजन स्वयं बनाते हैं, स्वपोषण कहलाते है तथा ऐसे जीव स्वपोषी कहलाते है। 
उदाहरण – अधिकांश पादप

(ii) विषम पोषण Heterotrophic Nutrition

पोषण की वह विधि जिसमें जीव अपना भोजन अन्य जंतु या पादप से ग्रहण करते है, विषम पोषण कहलाती है तथा ऐसे जीव विषमपोषी जीव कहलाते है।
उदाहरण – जंतु एवं अधिकतर जीव

पोषक के आधार पर पौधे निम्नलिखित प्रकार के होते है –

  1. स्वपोषी Autotrophic
  2. परजीवी Parasite
  3. मृतजीव पादप Saprophytic plants
  4. सहजीवी पादप Symbiotic Plant

(1) स्वपोषी पादप Autotrophic Plants

वे पादप जो सूर्य के प्रकाश से अपना भोजन स्वयं बनाते है, स्वयंपोषी कहलाते है तथा पोषण की इस विधि को स्वपोषण कहते है।
उदाहरण – हरे पादप 

नोट

  • पादपों में भोजन का निर्माण पत्तियों में होता है।
  • स्वयंपोषी पादपों में भोजन का निर्माण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा होता है। 

प्रकाश संश्लेषण Photosynthesis

प्रकाश की उपस्थिति में पौधे की क्लोरोफिल युक्त कोशिकाएं कार्बन डाइऑक्साइड व जल के संयोग से कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करती है, इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन जैसे निर्मुक्त होती है।

इसे निम्न अभिक्रिया द्वारा दर्शाया जा सकता है। 
कार्बन डाइऑक्साइड + जल + प्रकाश + क्लोरोफिल → कार्बोहाइड्रेट + ऑक्सीजन
CO2 + H2O + Light + Chlorophyll → C6H12O6 + 6O2 + 6H2O

यह कार्बोहाइड्रेट पत्तियों में मंड के रूप में संचित हो जाता है। प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री जैसे प्रकाश सूर्य से, कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण से, जल मृदा से पत्तियों तक वाहिकाओं द्वारा पहुँचाया जाता है।
पादपों में भोजन का निर्माण पत्तियों में होता है। पत्तियों की सतह पर अनेक सूक्ष्म छिद्र पाए जाते है, जिन्हे रंध्र कहते है। ये रंध्र प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के दौरान वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण करते है तथा ऑक्सीजन को बाहर निर्मुक्त करते है।
पत्तियों में पाए जाने वाला क्लोरोफिल, सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा को संग्रहित करता है। इस ऊर्जा का उपयोग पत्तियाँ भोजन निर्माण में करती है।

  • पत्तियों का हरा रंग क्लोरोफिल (हरित लवक) नामक वर्णक के कारण होता है।
  • शैवालों का हरा रंग क्लोरोफिल के कारण होता है तथा यह भी प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते है।
  • कार्बोहाइड्रेट कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के बने होते है।
  • प्रोटीन कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन व नाइट्रोजन के बने होते है।
  • पत्तियों की सतह पर अनेक सूक्ष्म छिद्र पाए जाते है, जिन्हे रंध्र कहते है।

स्टार्च परिक्षण – स्टार्च, आयोडीन से क्रिया करके नीला रंग प्रदान करता है, यह प्रक्रिया स्टार्च परिक्षण कहलाती है। 
पत्ती में स्टार्च की उपस्थिति यह दर्शाती है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया संपन्न हो चुकी है।
हरे रंग की पत्तियों के अतिरिक्त अन्य रंग की पत्तियों में भी क्लोरोफिल होता है, परन्तु अन्य वर्णक क्लोरोफिल के हरे रंग को प्रच्छादन (ढक) लेते है। इस प्रकार की पत्तियों में भी प्रकाश संश्लेषण होता है।

सभी जीवधारियों को अपने जीवन जीवन की विविध क्रियाओं की लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है। हरे पौधे सूर्य से प्राप्त प्रकाश ऊर्जा का उपयोग कर उसे रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करते है। यह ऊर्जा एडिनोसिन ट्राइफास्फेट (ATP) तथा अपचयित निकोटिनामाइड एडिनीन डाई फास्फेट (NADPH) के रूप में संचित रहती है। इस ऊर्जा का उपयोग पौधे कार्बन डाइऑक्साइड के अपचयन में करते है। सम्पूर्ण क्रिया के फलस्वरूप कार्बोहाइड्रेट प्राप्त होते है, जिससे सभी प्राणी भोजन लेते है।

प्रकाश संश्लेषण पादप की केवल उन्ही कोशिकाओं द्वारा होता है, जिनमें क्लोरोफिल पाया जाता है।

(ii) परजीवी पादप Parasite Plant

ऐसे पादप जो दूसरे जीवों से अपना भोजन प्राप्त करते है, परजीवी पादप कहलाते है। इनमें क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है। अतः यह इनमें ये अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते है।
परजीवी पादप के उदाहरण Parasite Plant Example – अमरबेल (Cuscuta कस्कुटा)

परपोषी पादप (Heterotrophs) – ऐसे पादप जिन से दूसरे पादप अपना भोजन ग्रहण करते है, परपोषी कहलाते है।

(iii) कीटभक्षी पादप (Insectivore Plant)

भोजन के लिए कीटों का भक्षण करने वाले जीवों को कीटभक्षी पादप कहते है।  इनकी आकृति घड़े के समान होती है। जो पत्तियों का ही रूपांतरित भाग होता है।
कीटभक्षी पादप के उदाहरण (Insectivore Plant Example) – घटपर्णी पादप (Nepenthes, Pitcher Plant), बीनस फ्लाई ट्रैप, सनड्यू , ड्रोसेरा, डायोनिया, यूट्रीकुलेरिया आदि।

(iv) मृतजीवी पादप Saprophytic plants

ऐसे पादप जो मृत जीवों या सड़े-गले पदार्थों से अपने भोजन प्राप्त करते है, मृतजीवी पादप कहलाते है तथा यह पोषण प्रणाली मृतजीवी पोषण प्रणाली कहलाती है। 
Note

  • इस प्रकार के पादपों में भी क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है अतः ये अपने भोजन स्वयं नहीं बना सकते है।
  • ये पादप मृत एवं सड़ी-गली वस्तुओं की सतह पर पाचक रस (एंजाइम) स्त्रावित करते है। ये पाचक रस इनको विलयन में बदल देते है, जिसे पादप अवशोधित कर पोषक तत्व प्राप्त करते है।   

मृतजीवी पादप के उदाहरण Saprophytic Plant Example – कवक (फंजाई) या फफूंद, कवक जैसे म्युकर, एगेरिकस ये सब कवक तथा (मोनोट्रोपा जो की पुष्पीय पादप है मृतजीवी के उदाहरण है।)

(v) सहजीवी पादप Symbiotic Plant

कुछ पादप ऐसे होते है जो एक-दूसरे के साथ रहते है तथा अपना भोजन व आवास एक-दूसरे के साथ बांटते है, ऐसे पादपों को सहजीवी पादप कहते है तथा यह सम्बन्ध सहजीवन कहलाता है।
सहजीवी पादप के उदाहरण Symbiotic Plant Example
(a) कवक का वृक्षों की जड़ों में रहना।

(b) लाइकेन Lichen –
लाइकेन सहजीवी पादपों का एक अच्छा उदाहरण है। इसमें शैवाल व कवक साथ- साथ रहते है। शैवाल में क्लोरोफिल पाया जाता है जबकि कवक में क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है। अतः शैवाल, कवक को पोषण देता है बदले में कवक, शैवाल को रहने का स्थान, जल तथा पोषक तत्व देता है।


(c) सहजीविता का अन्य उदाहरण –
पादपों में प्रोटीन बनाने के लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता है परन्तु ये वायुमंडलीय नाइट्रोजन को सीधे ग्रहण नहीं कर पाते है। पौधे नाइट्रोजन को विलेय रूप में ही ग्रहण करते है। अतः राइजोबियम नमक जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को विलेय पदार्थों में परिवर्तित कर देते है।

राइजोबियम जीवाणु अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते है। ये चना, मटर, मूँग, सेम तथा अन्य फलीदार पादपों की जड़ों में रहते है जिन्हें ये नाइट्रोजन की आपूर्ति करते है। बदले में ये पादप राइजोबियम जीवाणु को आवास एवं खाद्य पदार्थ देते है।

पोषक तत्व Nutrients

वे तत्व जो पादपों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक होते है, पोषक तत्व कहलाते है।

पादपों की सामान्य वृद्धि की लिए मृदा से प्राप्त होने वाले इन पोषक तत्वों को पादपों को इनकी मात्रात्मक आवश्यकता के अनुसार मुख्य रूप से दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

  • वृहत मात्रिक पोषक तत्व (Macronutrients)
  • सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्व (Micronutrients)

(i) वृहत मात्रिक पोषक तत्व (Macronutrients)

वे पोषक तत्व जिनकी पौधों को अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है, वृहत मात्रिक पोषक तत्व कहते है।
वृहत मात्रिक पोषक तत्व उदाहरण (Macronutrients) – कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पौटेशियम, गंधक आदि वृहत मात्रिक तत्व है।

  • पौधों के ऊतकों में इनकी मात्रा 0.2% से 4% पायी जाती है।

वृहत मात्रिक पोषक तत्वों को भागों में विभक्त किया जा सकता है –
(a) प्राथमिक पोषक तत्व (Primary Nutrients) – नाइट्रोजन, फास्फोरस, पौटेशियम
(b) द्वितीयक पोषक तत्व (Secondary Nutrients) – कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक 

नोट :- पौधों को कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन पोषक तत्व सामान्यतया वातावरण से जल व वायु में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड से प्राप्त होते है।

(ii) सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्व (Micronutrients)

ऐसे पोषक तत्व, खनिज लवण जिनकी पादपों की स्वस्थ वृद्धि के लिए अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है। ऐसे पोषक तत्वों सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्व कहलाते है। 
सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्व उदाहरण (Micronutrients) – ज़िंक, तांबा, मैगनीज, लोहा, बोरोन, मॉलिब्डेनम, क्लोरीन, निकल 

  • पादप ऊतकों में इनकी उपस्थिति 0.02% से भी काम होती है।
  • इसकी कम मात्रा भी पौधों के लिए आवश्यक है।
  • इसकी कम मात्रा भी पौधे की सामान्य वृद्धि को प्रभावित करती है।
  • इनमें से किसी भी पोषक तत्व की कमी होने पर पौधे रोगग्रस्त हो जाते है।

प्रकाश संश्लेषी वर्णक (Photosynthetic Pigment)

हरित लवक (Chlorophyll)

  • ये हरे रंग के लवक होते है।
  • इनका हरा रंग इनमें पाए जाने वाले वर्णक हरित लवक के कारण होता है।
  • पौधों तथा पत्तियों का हरा रंग इन्ही के कारण होता है।
  • इनका कार्य प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करना है।

हरित लवक में दो स्पष्ट क्षेत्र होते है –

(i) स्ट्रोमा (Stroma) (ii) ग्रेना (Grana)

(i) स्ट्रोमा (Stroma)

यह हरित लवक का मैट्रिक्स बनता है। इसमें प्रोटीन संश्लेषण करने वाले राइबोसोम बिखरे होते है। प्रकाश संश्लेषण की अप्रकाशिक अभिक्रिया स्ट्रोमा के इसी भाग में होती है।

(ii) ग्रेना (Grana)

हरित लवक के इस भाग में प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशिक अभिक्रिया संपन्न होती है। प्रत्येक हरित लवक में 40-60 ग्रेना पाए जाते है। ग्रेनं क्षेत्र में पट्टिकाएँ सिक्कों के ढेर की भांति एक-दूसरे पर व्यवस्थित रहती है, इन्हें थॉयलेकॉइड्स कहते है।

हरित लवक में चार प्रकार के वर्णक पाए जाते है।
दो हरे वर्णक जिन्हें क्लोरोफिल कहते है तथा नारंगी वर्णक को कैरोटीन एवं पीले रंग के वर्णक जैंथोफिल कहते है।

प्रकाश संश्लेषण की क्रियाविधि (Mechanism of Photosynthesis)

कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल, प्रकाश संश्लेषण के दो प्रमुख कच्चे पदार्थ है। पौधों के पॉर्न हरित तथा अन्य वर्णक प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण कर इसका रासायनिक ऊर्जा के रूप में रूपांतरण कर देते है। प्रकाश संश्लेषण की समग्र क्रिया को निम्लिखित समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है –

प्रकाश संश्लेषण मुख्य रूप से दो चरणों में संपन्न होता है –

(i) प्रकाश अभिक्रिया (Light Reaction) (ii) अप्रकाशिक अभिक्रिया (Dark Reaction)

(i) प्रकाश अभिक्रिया (Light Reaction)

  • यह क्रिया क्लोरोप्लास्ट के अंदर स्थित थॉयलेकॉइड्स में होती है।
  • कुछ निश्चित तरंग दैध्यों के प्रकाश पर्णहरित द्वारा अवशोधित किये जाते है।
  • जल का प्रकाशिक अपघटन होता है।
  • रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन वाम ATP के रूप में ऊर्जा का संग्रह और NADPH का निर्माण या संश्लेषण होता है। अतः इसे प्रकाश संश्लेषण अभिक्रिया अथवा प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया कहते है।

(ii) अप्रकाशिक अभिक्रिया (Dark Reaction)

  • यह क्रिया हरित लवक के स्ट्रोमा भाग में होती है।
  • इस क्रिया में प्रकाश संश्लेषण होता है जिसके फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड से कार्बोहाइड्रेट है निर्माण होता है।
  • इस क्रिया के लिए प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है। अतः इसे अप्रकाशिक अभिक्रिया कहते है।
  • इस क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का स्थिरीकरण एवं अपचयन होता है। जिसके फलस्वरूप प्रथम उत्पाद तीन कार्बन अणु का होने के कारण इसे C3 अथवा केल्विन चक्र (Calvin Cycle) कहते है।

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