NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 6 Subhashitani | षष्ठ: पाठ: सुभाषितानि प्रश्न उत्तर
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NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 Sanskrit
Shemushi
कक्षा – 10 दशमकक्षाया:
षष्ठ: पाठ: पाठ – 6
सुभाषितानि
संस्कृतपाठयपुस्तकम्
NCERT solutions for class 10 sanskrit shemushi Chapter 6 Subhashitani Question and Answer
सुभाषितानि पाठ के सम्पूर्ण प्रश्न और उत्तर
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अभ्यासः
1. एकपदेन उत्तरं लिखत –
(क) मनुष्याणां महान् रिपुः कः?
उत्तरम् – आलस्यं
(ख) गुणी किं वेत्ति?
उत्तरम् – गुणं
(ग) केषां सम्पत्तौ च विपत्तौ च महताम् एकरूपता?
उत्तरम् – महताम्
(घ) पशुना अपि कीदृशः गृह्यते?
उत्तरम् – उदीरितोऽर्थः
(ङ) उदयसमये अस्तसमये च क: रक्तः भवति?
उत्तरम् – सविता
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(क) केन समः बन्धुः नास्ति?
उत्तरम् – उद्यमेन समः बन्धुः नास्ति।
(ख) वसन्तस्य गुणं क: जानाति?
उत्तरम् – पिक: वसन्तस्य गुणं जानाति।
(ग) बुद्धयः कीदृश्यः भवन्ति?
उत्तरम् – परेङ्गितज्ञानफलाः बुद्धयः भवन्ति।
(घ) नराणां प्रथमः शत्रुः कः?
उत्तरम् – नराणां प्रथमः शत्रुः क्रोधः।
(ङ) सुधियः सख्यं केन सह भवति?
उत्तरम् – सुधियः सख्यं सुधीभिः सह भवति।
(च) अस्माभिः कीदृशः वृक्षः सेवितव्यः?
उत्तरम् – अस्माभिः फलच्छायासमन्वितः वृक्षः सेवितव्यः।
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3. अधोलिखिते अन्वयद्वये रिक्तस्थानपूर्ति कुरुत –
(क) यः ……………….. उद्दिश्य प्रकुप्यति तस्य ……………… स ध्रुवं प्रसीदति। यस्य मनः अकारणद्वेषि अस्ति, ……………….. तं कथं परितोषयिष्यति?
(ख) …………………. संसारे खलु ……………….. निरर्थकम् नास्ति। अश्वः चेत् ………………… वीरः, खर: ……………. वहने (वीर:) (भवति)।
उत्तरम् –
(क) यः ……………….. उद्दिश्य प्रकुप्यति तस्य ……………… स ध्रुवं प्रसीदति। यस्य मनः अकारणद्वेषि अस्ति, ……………….. तं कथं परितोषयिष्यति?
य: निमित्तम् उद्दिश्य प्रकुप्यति तस्य अपगमे स ध्रुवं प्रसीदति। यस्य मनः अकारणद्वेषि अस्ति, जनः तं कथं परितोषयिष्यति?
(ख) …………………. संसारे खलु ……………….. निरर्थकम् नास्ति। अश्वः चेत् ………………… वीरः, खर: ……………. वहने (वीर:) (भवति)।
विचित्रे संसारे खलु किञ्चित् निरर्थकम् नास्ति। अश्वः चेत् धावने वीरः खरः भारस्य वहने (वीरः) भवति।
4. अधोलिखितानां वाक्यानां कृते समानार्थकान् श्लोकांशान् पाठात् चित्वा लिखत –
(क) विद्वान् स एव भवति यः अनुक्तम् अपि तथ्यं जानाति।
उत्तरम् – अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः।
(ख) मनुष्यः समस्वभावैः जनैः सह मित्रतां करोति।
उत्तरम् – समान – शील – व्यसनेषु सख्यम्।
(ग) परिश्रमं कुर्वाण: नरः कदापि दु:खं न प्राप्नोति।
उत्तरम् – नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।
(घ) महान्तः जनाः सर्वदैव समप्रकृतयः भवन्ति।
उत्तरम् – सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता।
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5. यथानिर्देशं परिवर्तनं विधाय वाक्यानि रचयत –
(क) गुणी गुणं जानाति। (बहुवचने)
उत्तरम् – गुणिनः गुणान् गुणानि जानन्ति।
(ख) पशुः उदीरितम् अर्थं गृह्णाति। (कर्मवाच्ये)
उत्तरम् – पशुना उदीरितः अर्थः गृहयते।
(ग) मृगाः मृगैः सह अनुव्रजन्ति। (एकवचने)
उत्तरम् – मृगः मृगेण सह अनुव्रजति।
(घ) कः छायां निवारयति। (कर्मवाच्ये)
उत्तरम् – केन छाया निर्वायते।
(ङ) तेन एव वह्निनां शरीरं दह्यते। (कर्तृवाच्ये)
उत्तरम् – एषः एव अग्नि शरीर दहति।
6. (अ) संधि/सन्धिविच्छेदं कुरुत –
(क) न | + अस्ति | + उद्यमसम: | – ………. |
(ख) ………. |
+ ………. | – तस्यापगमे | |
(ग) अनुक्तम् | + अपि | + ऊहति | – ………. |
(घ) ………. | + ………. | – गावश्च | |
(ङ) ………. | + ………. | – नास्ति | |
(च) रक्तः | + च | + अस्तमये | – ………. |
(छ) ………. | + ………. | – योजकस्तत्र |
उत्तरम् –
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(क) न | + अस्ति | + उद्यमसम: | – नास्त्युद्यमसमः |
(ख) तस्य |
+ अपगमे | – तस्यापगमे | |
(ग) अनुक्तम् | + अपि | + ऊहति | – अनुक्तमप्यूहति |
(घ) गावः | + च | – गावश्च | |
(ङ) न | + अस्ति | – नास्ति | |
(च) रक्तः | + च | + अस्तमये | – रक्तश्चास्तमये |
(छ) योजक: | + तत्र | – योजकस्तत्र |
(आ) समस्तपदं/विग्रहं लिखत –
(क) उद्यमसमः | …………. |
(ख) शरीरे स्थितः | …………. |
(ग) निर्बल: | …………. |
(घ) देहस्य विनाशाय | …………. |
(ङ) महावृक्षः | …………. |
(च) समानं शीले व्यसनं येषां तेषु | …………. |
(छ) अयोग्यः | …………. |
उत्तरम् –
(क) उद्यमसमः | उद्यमेन समः |
(ख) शरीरे स्थितः | शरीरस्थितः |
(ग) निर्बल: | निर्गतम् बलम् यस्मात् सः |
(घ) देहस्य विनाशाय | देहविनाशाय |
(ङ) महावृक्षः | महान् वृक्षः |
(च) समानं शीले व्यसनं येषां तेषु | समानशील व्यसनेषु |
(छ) अयोग्यः | न योग्य: |
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7. अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत –
(क) प्रसीदति | …………. |
(ख) मूर्खः | …………. |
(ग) बली | …………. |
(घ) सुलभः | …………. |
(ङ) संपत्तौ | …………. |
(च) अस्तमये | …………. |
(छ) सार्थकम् | …………. |
उत्तरम् –
(क) प्रसीदति | अवसीदति |
(ख) मूर्खः | पण्डितः |
(ग) बली | निर्बलः |
(घ) सुलभः | दुर्लभः |
(ङ) संपत्तौ | विपत्ती |
(च) अस्तमये | उदये |
(छ) सार्थकम् | निरर्थकम् |
(अ) संस्कृतेन वाक्यप्रयोगं कुरुत –
(क) वायस: | वायसः कर्कश ध्वनि करोति। |
(ख) निर्मित्तम् | निमित्तम् कोऽपि भवति। |
(ग) सूर्य: | सूर्यः प्रकाशम् ददाति। |
(घ) पिक: | पिकः मधुर गायति। |
(ङ) वह्निः | वह्निः कं न दहति? |
परियोजनाकार्यम् –
(क) उद्यमस्य महत्वं वर्णयतः पञ्चश्लोकान् लिखत।
अथवा
कापि कथा या भवद्भिः पठिता स्यात् स्याम् उद्यमस्य महत्वं वर्णितम्, तां स्वभाषया लिखत।
(ख) निमित्तमुद्दिश्य यः प्रकुप्यति ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति। यदि भवता कदापि ईदृशः अनुभवः कृतः तर्हि स्वीकृतभाषया लिखत।
योग्यताविस्तारः
संस्कृत कृतियों के जिन पद्यों या पद्यांशों में सार्वभौम सत्य को बड़े मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। उन पद्यों को सुभाषित कहते हैं। यह पाठ ऐसे दस सुभाषितों का संग्रह है जो संस्कृत के विभिन्न ग्रंथों से संकलित हैं। इनमें परिश्रम का महत्त्व, क्रोध का दुष्प्रभाव, सभी वस्तुओं की उपादेयता और बुद्धि की विशेषता आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
1. तत्पुरुष समास
शरीरस्थः | शरीरे स्थितः |
गृहस्थः | गृहे स्थितः |
मनस्स्थः | मनसि स्थितः |
तटस्थः | तटे स्थितः |
कूपस्थः | कूपे स्थितः |
वृक्षस्थः | वृक्षे स्थितः |
विमानस्थः | विमाने स्थितः |
2. अव्ययीभाव समास
निर्गुणम् | गुणानाम् अभावः |
निर्मक्षिकम् | मक्षिकाणाम् अभावः |
निर्जलम् | जलस्य अभाव: |
निराहारम् | आहारस्य अभाव: |
3. पर्यायवाचिपदानि
शत्रुः | रिपुः, अरिः, वैरिः |
मित्रम् | सखा, बन्धुः, सुहृद् |
वह्निः | अग्निः, दाहकः, पावकः |
सुधियः | विद्वांसः, विज्ञाः, अभिज्ञाः |
अश्वः | तुरगः, हयः, घोटक: |
गजः | करी, हस्ती, दन्ती, नागः, कुञ्जर:। |
वक्षः | द्रुमः, तरुः, महीरुहः, विटपः, पादप:। |
सविता | सूर्यः, मित्र:, दिवाकरः, भास्कर:। |
मन्त्रः – ‘मननात् त्रायते इति मन्त्रः।’
अर्थात् वे शब्द जो सोच-विचार कर बोले जाएँ। सलाह लेना, मन्त्रणा करना। मन्त्र + अच् (किसी भी देवता को सम्बोधित) वैदिक सूक्त या प्रार्थनापरक वैदिक मन्त्र। वेद का पाठ तीन प्रकार का है – यदि छन्दोबद्ध और उच्च स्वर से बोला जाने वाला है तो ‘ऋक् ‘ है, यदि गद्यमय और मन्दस्वर में बोला जाने वाला है तो ‘यजुस्’ है, और यदि छन्दोबद्धता के साथ गेयता है तो ‘सामन्’ है (प्रार्थनापरक)। यजुस् जो किसी देवता को उद्दिष्ट करके बोला गया हो – ‘ॐ नमः शिवाय’ आदि। पंचतंत्र में भी मंत्रणा, परामर्श, उपदेश तथा गुप्त मंत्रणा के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग हुआ है।
Very nice