NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Ruchira Chapter 8 Sansarsagarsya Nayakah | कक्षा 8 संस्कृत अष्टम: पाठ: संसारसागरस्य नायका:

ncert solutions for class 8 sanskrit Ruchira Chapter 8 sanskritpaathaypustakam Tritiyo Bhaag Sansarsagarsya Nayakah संसारसागरस्य नायका: अर्थात संसाररूपी सागर के नायक। Here We learn what is in this lesson संसारसागरस्य नायका: and how to solve questions एनसीइआरटी कक्षा 8 संस्कृत रुचिरा तृतीयो भाग: अष्टमवर्गाय संस्कृतपाठ्यपुस्तकम् षष्ठ: अष्टम: पाठ: संसारसागरस्य नायका: का हिंदी अनुवाद और प्रश्न उत्तर सम्मिलित है।

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NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Ruchira

कक्षा – 8 अष्टमवर्गाय
सप्तम: पाठ: पाठ – 8
संसारसागरस्य नायका:
संस्कृतपाठयपुस्तकम्

NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Ruchira संसारसागरस्य नायका: पाठ का हिंदी अनुवाद (संसाररूपी सागर के नायक)

प्रस्तुत पाठ अनुपम मिश्र की कृति आज भी खरे हैं तालाब के संसार सागर के नायक नामक अध्याय से लिया गया है। इसमें विलुप्त होते जा रहे पारम्परिक ज्ञान, कौशल एवं शिल्प के धनी गजधर के सम्बन्ध में चर्चा की गयी है। पानी के लिए मानव निर्मित तालाब, बावड़ी जैसे निर्माणों को लेखक ने यहाँ संसार सागर के रुप में चित्रित किया है।

के आसन ………………………………………………………….. रचयत: स्म।
अर्थ – कौन थे वो अज्ञात नाम वाले?
सैकड़ो और हजारो तालाब शून्य (अचानक) से प्रकट नहीं हुए। यही तालाब यहाँ संसार के सागर कहे गए हैं। इन तालाबों के निर्माण में, बनवाने वालों की संख्या तो एक होती थी परन्तु बनाने वालों की संख्या दस या उससे अधिक होती थी। ये एक या दस की संख्या वाले व्यक्ति सौ या हजारों की संख्या में तालाबों का निर्माण किया करते थे।

परं ………………………………………………………….. परिवर्तितानि।
अर्थ – परन्तु बीते हुए दो सौ वर्षों में नयी पद्धति के द्वारा समाज ने जो कुछ भी पढ़ा है। उस पढ़े हुए समाज ने एक की संख्या, दस की संख्या और हजारों की संख्या को शून्य में ही परिवर्तित कर दिया है। तात्पर्य यह है की आज के मौजूदा समय में हमने उन लोगों के योगदान को भुला दिया है।

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अस्य ………………………………………………………….. प्रयतितम।
अर्थ – आज को जो हमारा नया समाज है, इस समाज में कभी ये जानने की इच्छा नहीं होती कि हमसे पहले इन तालाबों का निर्माण को करते थे। इस प्रकार के कार्यों को करने के लिए ज्ञान कि जो नै तकनीक विकसित हो चुकी है। इन नयी तकनीक द्वारा भी पहले से किये इन कार्यो के मापन का कार्य किसी न नहीं किया।

अद्य ………………………………………………………….. गजधर:।
अर्थ – आज ये जो व्यक्ति हमारे लिए अनजान है, पुराने समय में ये बहुत प्रसिद्ध हुआ करते थे। पुरे देश में तालाबों का निर्माण किया जाता था। इनको बनाने वाले व्यक्ति भी पुरे देश में निवास किया करते थे।
गजधर इस सुन्दर शब्द का तालाब बनाने वालों के लिए बड़े आदर से किया जाता था। राजस्थान के कुछ भागों में इस शब्द का प्रयोग आज भी प्रचलित है। कौन है ये गजधर? जो व्यक्ति मापन के कार्यो में प्रयोग होने वाले गज को धारण करता है, उसे गजधर कहा जाता है।

गजपरिमाणं ………………………………………………………….. परिचित:।
अर्थ – गज रुपी परिमाण ही मापन के कार्यो में प्रयोग किया जाता है। तीन हाथों के बराबर लोहे की छड़ी को हाथ में लेकर चलते हुए गजधर को आज के समय में उतना आदर प्राप्त नहीं होता जितना उन्हें पुराने समय में प्राप्त होता था। गजधर जो समाज की गहराई का मापन करें इसी रुप में उन्हें पहचाना जाता था।

गजधरा: ………………………………………………………….. शिल्पिभ्य:।
अर्थ – गजधर वास्तुकार भी थे। चाहे ग्रामीण समाज हो या नगरीय समाज निर्माण और सुरक्षा प्रबंध का सारा कार्य गजधर ही संभाला करते थे। नगर नियोजन के छोटे से छोटे कार्य से लेकर लगभग सभी काम इन्ही के द्वारा किये जाते थे। वे योजनाएं प्रस्तुत किया करते थे, भविष्य के खर्च का अनुमान लगाया करते थे और निर्माण कार्य ने प्रयोग होने वाले उपकरणों को इकठ्ठा किया करते थे। बदले में वे अपने स्वामी से ज्यादा कुछ नहीं मांगते थे जिससे की उनका स्वामी देने में समर्थ न हो। कार्य समाप्त होने पर गजधरों को वेतनके अतिरिक्त सम्मान भी दिया जाता था।
इस प्रकार के महान शिल्पियों को हमारा प्रणाम।

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अभ्यास: संसारसागरस्य नायका: पाठ के प्रश्नों के उत्तर (संसाररूपी सागर के नायक)

1. एकपदेन उत्तरत –
(क) कस्य राज्यस्य भागेषु गजधर: शब्द: प्रयुज्जते?
उत्तरम् – राजस्थानस्य।

(ख) गजपरिमाणं क: धारयति?
उत्तरम् – गजधर:।

(ग) कार्यसमाप्तौ वेतनानि अतिरिक्त गजधरेभ्य: किं प्रदीयते स्म?
उत्तरम् – सम्मानम्।

(घ) के शिल्पिरूपेण न समादृता: भवन्ति?
उत्तरम् – गजधरा:।

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2. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि लिखत –
(क) तड़ागा: कुत्र निर्मीयन्ते स्म?
उत्तरम् – तड़ागा: अशेषे देशे निर्मीयन्ते स्म।

(ख) गजधरा: कस्मिन रूपे परिचिता:?
उत्तरम् – गजधरा: सामजस्य गाम्भीर्यस्य मापका: इत्यस्मिन् रूपे परिचिता:।

(ग) गजधरा: किं कुर्वन्ति स्म?
उत्तरम् – गजधरा: योजनां प्रस्तुवन्ति स्म, भविव्ययम् आकलयन्ति स्म, उपकरणभारान् संग्रहणन्ति स्म।

(घ) के सम्माननीया:?
उत्तरम् – गजधरा: सम्माननीया:।

3. रेखङ्कितानि पदानि आधृत्य प्रश्न-निर्माणं कुरुत –
(क) सुरक्षाप्रबन्धस्य दायित्वं गजधरा: निभालयन्ति स्म।
उत्तरम् – कस्य दायित्वं गजधरा: निभालयन्ति स्म?

(ख) तेषां स्वामिन: असमर्था: सन्ति।
उत्तरम् – केशाम् स्वामिन: असमर्था: सन्ति?

(ग) कार्यसमाप्तौ वेतनानि अतिरिच्य सम्मानमपि प्राप्नुवन्ति।
उत्तरम् – कार्यसमाप्तौ कानि अतिरिच्य सम्मानमपि प्राप्नुवन्ति?

(घ) गजधर: सुन्दर: शब्द: अस्ति।
उत्तरम् – क: सुन्दर: शब्द: अस्ति?

(ड) तड़ागा: संसारसागर: कथ्यन्ते।
उत्तरम् – के संसारसागर: कथ्यन्ते?

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4. अधोलिखितेषु यथापेक्षितं सन्धिं/विच्छेदं कुरुत –

(क) अद्य + अपि = …………
(ख) ………… + ………… = स्मरणार्थम्
(ग) इति + अस्मिन् = …………
(घ) ………… + ………… = एतेष्वेव
(ड) सहसा + एव = …………

उत्तरम –

(क) अद्य + अपि = अद्यापि
(ख) स्मरण + अर्थम् = स्मरणार्थम्
(ग) इति + अस्मिन् = इत्यस्मिन्
(घ) एतेषु + एव = एतेष्वेव
(ड) सहसा + एव = सहसैव

4. मञ्जूषात: समुचितानी पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत –

रचयन्ति गृहीत्वा सहसा जिज्ञासा सह

(क) छात्रा: पुस्तकानि गृहीत्वा विद्यालयं गच्छन्ति।
(ख) मालाकारा: पुष्पै: माला: रचयन्ति
(ग) मम मनसि एका जिज्ञासा वर्तते।
(घ) रमेश: मित्रे: सह विद्यालयं गच्छति।
(ड) सहसा बालिका तत्र अहसत।

5. पदनिर्माणं कुरुत – You can also See NCERT Solutions for class 8 Sanskrit all Chapter to Click Here.

  धातु   प्रत्यय:   पदम्
यथा – कृ + तुमुन् = कर्तुम्
  ह्र + तुमुन् = हर्तुम्
  तृ + तुमुन् = तुर्तुम्
           
यथा – नम् + क्त्वा = नत्वा
  गम् + क्त्वा = गत्वा
  त्यज् + क्त्वा = त्यक्त्वा
  भुज् + क्त्वा = भुक्त्वा
           
  उपसर्ग: धातु: प्रत्यय: = पदम्
यथा – उप गम् ल्यप् = उपगम्य
  सम् पूज् ल्यप् = संपूज्य
  नी ल्यप् = आनीय
  प्र दा ल्यप् = प्रदाय

7. कोष्ठकेषु दत्तेषु शब्देषु समुचितां विभक्तिं योजयित्वा रिक्तस्थानानि पुरयत –
यथा – विद्यालयं परित: वृक्षा: सन्ति। (विद्यालय)
(क) ग्रामं उभयत: ग्रामा: सन्ति। (ग्राम)
(ख) नगरं सर्वत: अट्टालिका: सन्ति। (नगर)
(ग) धिक् कापुरुषम्। (कापुरुष)

यथा –  मृगा: मृगैः सह धावन्ति। (मृग)
(क) बालका: बलिकाभि: सह पठन्ति। (बालिका)
(ख) पुत्र पित्रा सह आपणां गच्छति। (पितृ)
(ग) शिशु: मात्रा सह क्रीडति। (मातृ)

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