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NCERT Science for Class 8 Chapter 10 Notes REACHIING THE AGE OF ADOLLE | कक्षा 8 विज्ञान अध्याय 10 किशोरावस्था की ओर नोट्स

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NCERT Science for Class 8 Chapter 10 Notes REACHIING THE AGE OF ADOLLE : NCERT class 8 science notes Chapter 10 REACHIING THE AGE OF ADOLLE | कक्षा 8 विज्ञान अध्याय 10 (class8 science chapter 10) किशोरावस्था की ओर हम मानव शरीर की वृद्धि जन्म के समय से ही प्रारम्भ हो जाती है। किन्तु 10 या 11 वर्ष की आयु के बाद शरीर की वृद्धि को साफ़ देखा जा सकता है। सब जानते हैं कि मानव एक निश्चित आयु के होने के पश्चात् ही जनन कर पाते हैं। इसका कारण मानव के शरीर में होने वाले परिवर्तन हैं। ये परिवर्तन मानव वृद्धि का ही एक भाग है। जिससे हमें यह पता चलता है कि कोई बच्चा अब युवावस्था में प्रवेश कर रहा है। NCERT Science for Class 8 के Chapter 10 किशोरावस्था की ओर में हम मानव के शरीर में होने वाले उन्ही परिवर्तनों का अध्ययन करेंगे। Class8 Science Chapter 10 में हम यह भी अध्ययन करेंगे कि मानव में पाई जाने वाली अन्तः स्त्रावी गंथियों से उत्पन्न हार्मोन्स शरीर पर क्या प्रभाव डालते हैं।

NCERT Science for Class 8 Chapter 10 Notes : REACHIING THE AGE OF ADOLLE
एन सी इ आर टी नोट्स कक्षा 8 विज्ञान अध्याय 10 किशोरावस्था की ओर नोट्स class8 science chapter 10

किशोरावस्था (ADOLESCENCE) 

जीवन काल की वह अवधि जब शरीर में ऐसे परिवर्तन होते हैं जिसके परिमाणस्वरूप जनन परिपक्वता आती है, किशोरावस्था कहलाती है। किशोरावस्था के दौरान मनुष्य के शरीर में अनेक परिवर्तन आते हैं। यही परिवर्तन यौवनावस्था का संकेत हैं।

  • किशोरावस्था को अंग्रेजी में टीनेजर्स (Teenagers) भी कहा जाता है।
  • किशोरावस्था लगभग 11 वर्ष से प्रारम्भ होकर 18 अथवा 19 वर्ष तक रहती है।
  • लड़कियों में किशोरावस्था का प्रारम्भ लड़कों से एक या दो वर्ष पूर्व प्रारम्भ हो जाता है।
  • सभी व्यक्तियों में किशोरावस्था की अवधि भिन्न-भिन्न होती है।
  • लड़के एवं लड़कियों की जनन क्षमता का विकास होना।

यौवनारम्भ में होने वाले परिवर्तन 

मानव की यौवनारम्भ में होने वाले परिवर्तन निम्न लिखित है :

1. लम्बाई में वृद्धि 

यौवनारम्भ के समय लम्बाई में एकाएक वृद्धि होती है यह वृद्धि सबसे अधिक दृष्टिगोचर होती है। इस समय शरीर की हाथ एवं पैरों की अस्थियों की, लम्बाई में वृद्धि होती है और व्यक्ति लम्बा हो जाता है। 
यौवनारम्भ के प्रारम्भ में लड़कियों की लम्बाई में लड़कों की तुलना में वृद्धि अधिक होती है। जबकि यौवनावस्था के अंत में लड़को की लम्बाई लड़कियों की तुलना में तीव्र गति से बढ़ती है।

लडके व लड़कियों की आयु के साथ लम्बाई में वृद्धि की औसत दर निम्न चार्ट के द्वारा दर्शाई गई है :

आयु
(वर्षों में)
पूर्ण लंबाई का %
लड़के लड़कियाँ
8 72% 77%
9 75% 81%
10 78% 84%
11 81% 88%
12 84% 91%
13 88% 95%
14 92% 98%
15 95% 99%
16 98% 99.5%
17 99% 100%
18 100% 100%

उपरोक्त ग्राफ से हम समझ सकते हैं कि

  • प्रारम्भ में लड़कियाँ लड़कों कि अपेक्षा अधिक तीव्रता से बढ़ती हैं।
  • लगभग 18 वर्ष की आयु तक दोनों अपनी अधिकतम लम्बाई प्राप्त कर लेते हैं।
  • अलग-अलग व्यक्तियों में वृद्धि की दर भी भिन्न-भिन्न होती है।
  • कुछ बच्चे यौवनावस्था में तीव्र गति से बढ़ते हैं तथा बाद में यह गति धीमी हो जाती है।
  • कुछ बच्चे धीरे-धीरे वृद्धि करते हैं।
  • शरीर की वृद्धि एवं लम्बाई उसके परिवार के किसी न किसी सदस्य के लगभग समान होती है। इसका कारण माता-पिता से आये हुए जीन हैं।
  • व्यक्ति की वृद्धि उसके द्वारा लिए गए संतुलित आहार पर भी निर्भर करती है।

नोट : शरीर के सभी अंग समान दर से वृद्धि नहीं करते हैं। कभी कभी किशोर के हाथ अथवा पैर शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा बड़े दिखाई देते हैं। परन्तु शीघ्र ही दूसरे भाग भी वृद्धि कर शारीरिक अनुपात को संतुलित कर देते हैं फलतः शरीर सुडौल हो जाता है।

2. शारीरिक आकृति में परिवर्तन 

यौवनारम्भ में व्यक्ति की शारीरिक आकृति में निम्न परिवर्तन देखे जा सकते हैं :

  • यौवनारम्भ में वृद्धि के कारण कंधे फैल कर चौड़े हो जाते हैं।
  • लड़कियों में कमर का निचला भाग छोड़ा हो जाता है।
  • लड़कों की शारीरिक पेशियाँ लड़कियों की अपेक्षा सुस्पष्ट एवं गठी दिखाई देती है

3. स्वर में परिवर्तन 

यौवनारम्भ में व्यक्ति की आवाज/स्वर में निम्न परिवर्तन देखे जा सकते हैं :

  • यौवनारम्भ में स्वरयंत्र अथवा लैरिन्क्स में वृद्धि का प्रारम्भ होता है।
  • लड़कों का स्वरयंत्र विकसित होकर अपेक्षाकृत बड़ा हो जाता है। जिससे स्वरयंत्र गले के सामने की ओर सुस्पष्ट उभरे भाग के रूप में दिखाई देता है। इस उभरे हुए भाग की ऐडम्स ऐपल (कंठमणि) कहते हैं।
  • लड़कियों का स्वरयंत्र छोटा होने के कारण बाहर से दिखाई नहीं देता है।
  • लड़कियों का स्वर उच्चतारत्व वाला होता है। जबकि लड़कों का स्वर गहरा होता है।
  • स्वरयंत्र की पेशियों में अनियंत्रित वृद्धि से लड़कों के आवाज़ फटने या भर्राने लगती है। जो कुछ समय बाद सामान्य हो जाती है।

4. स्वेद एवं तैलग्रंथियों की क्रियाशीलता में वृद्धि 

किशोरावस्था में स्वेद एवं तैलग्रंथियाँ अधिक विकसित हो जाती है। जिससे इनका स्त्राव बढ़ जाने के कारण इनकी क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है और व्यक्ति के चेहरे पर फुंसियाँ और मुहासे आदि हो जाते हैं।

5. जनन अंगों का विकास 

यौवनारम्भ में नर जननांग, जैसे कि वृषण एवं शिश्न, पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं। नर के वृषण से शुक्राणुओं का उत्पादन शुरू हो जाता है। 
लड़कियों में अंडाशय आकर में वृद्धि करता है तथा अंड परिपक्व होने लगते हैं। अंडाशय से अंडाणुओं का निर्मोचन भी प्रारम्भ हो जाता है।

6. मानसिक, बौद्धिक एवं संवेदनात्मक परिपक्वता प्राप्त होना

किशोरावस्था जीवन का ऐसा समय होता है जबकि व्यक्ति के मस्तिष्क की सीखने की क्षमता सबसे अधिक होती है। 
किशोरावस्था में व्यक्ति के सोचने के ढंग में परिवर्तन होता है। वह अब सोचने में अधिक समय लेने लगता है। उसकी बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। वह स्थिति के अनुरूप स्वयं को ढालने का प्रयास करता है तथा कभी कभी असुरक्षित महसूस करता है। असुरक्षित महसूस करने का कोई कारन नहीं होता है। ये परिवर्तन प्राकृतिक होते हैं।

गौण लैंगिक लक्षण 

युवावस्था में जनन अंगों का पूर्ण विकास हो चूका होता है तथा इनसे शुक्राणु एवं अंडाणु उत्पन्न होने लगते हैं। लड़कियों में स्तनों का विकास होने लगता है तथा लड़कों के चहरे और सीने पर बाल उगने लगते हैं दाढ़ी-मूँछे आने लगती है। लड़कों और लड़कियों दोनों में ही बगल एवं जाँघ के ऊपरी भाग अथवा प्यूबिक क्षेत्र में भी बाल आ जाते हैं।

व्यक्ति में पाये जाने वाले वह लक्षण जो लड़कियों को लड़कों से पहचानने में सहायता करते हैं, गौण लैंगिक लक्षण कहलाते हैं।

हार्मोन्स

वे रासायनिक पदार्थ जो अंत: स्त्रावी ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित होते हैं तथा सीधे रक्त में पहुंचते हैं, हार्मोन्स कहलाते हैं।

टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन : यह हार्मोन नर के वृषण से स्त्रावित होता है। अतः इसे पौरुष हार्मोन भी कहते हैं। इसके स्त्रावण से चेहरे और सीने पर बाल आते हैं।

एस्ट्रोजन हार्मोन : यह हार्मोन मादा के अंडाशय से स्त्रावित होता है। अतः इसे स्त्री हार्मोन भी कहते हैं। इसके स्त्रावण से मादा में स्तन एवं दुग्ध ग्रंथियों का विकास होता है।

पिट्यूटरी हार्मोन : यह हार्मोन पियूष ग्रंथि के द्वारा स्त्रावित किया जाता है। जो कि टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन एवं एस्ट्रोजन हार्मोन के उत्पादन का नियंत्रण करता है।

जनन प्रकार्य प्रारम्भ करने में हार्मोन की भूमिका :

हार्मोन्स को लक्ष्य-स्थल पर पर पहुंचने के लिए अंत:स्त्रावी ग्रंथियाँ इन्हें रुधिर में प्रवाहित करती है। जहाँ लक्ष्य-स्थल हार्मोन्स के प्रति अनुक्रिया करते हैं। वृषण एवं अंडाशय लैंगिक हार्मोन स्त्रावित करते हैं जो कि पियूष ग्रंथि के द्वारा स्त्रावित हार्मोन के द्वारा नियंत्रित रहते हैं एवं अंडाशय में अंडाणु एवं वृषण में शुक्राणु के परिपक्व होने को नियंत्रित करता है।

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मानव में जनन काल की अवधि

जब किशोरों के वृषण और अंडाशय युग्मक उत्पादित करने लगते हैं तब वे जनन योग्य हो जाते हैं। पुरुषों में युग्मक की परिपक्तवाता एवं उत्पादन की क्षमता स्त्रियों से अधिक समय तक होती है।

स्त्रियों में जननावस्था का प्रारम्भ यौवनावस्था (10 से 12 वर्ष की आयु) से प्रारम्भ होकर 45 से 50 वर्ष की आयु तक चलता है। अंडाशयों में एक अंडाणु को परिपक्व होने में लगभग 28 से 30 दिनों का समय लगता हैं तथा अंडाशय द्वारा निर्मोचित कर दिया जाता है। इस समय गर्भाशय की दीवार मोती हो जाती है जिससे वह अंडाणु के निषेचन के पश्चात् युग्मनज को ग्रहण कर सके। जिसके फलस्वरूप गर्भधारण होता है।

ऋतुस्त्राव अथवा रजोधर्म 

यदि अंडाणु का निषेचन नहीं हो  पता तब उस स्थिति में अंडाणु तथा गर्भाशय का मोटा स्तर उसकी रुधिर वाहिकाओं सहित निस्तारित हो जाता है। इससे स्त्रियों में रक्तस्त्राव होता है जिसे ऋतुस्त्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं। यह लगभग 28 से 30 दिन में एक बार होता है। प्रारम्भ में यह अनियमित हो सकता है। बाद में यह नियमित हो जाता है। यह 45 से 50 वर्ष की आयु तक चलता है। ऋतुस्त्राव चक्र का नियंत्रण हार्मोन द्वारा होता है।

रजोदर्शन : पहला ऋतुस्त्राव यौवनारम्भ में होता है जिसे रजोदर्शन कहते हैं।

रजोनिवृत्ति : ऋतुस्त्राव के रुक जाने को रजोनिवृत्ति कहते हैं। 

नोट : स्त्रियों में जनन-काल की अवधि रजोदर्शन से रजोनिवृत्ति तक होती है।

लिंग-निर्धारण

शिशु के लिंग का निर्धारण निषेचित अंडाणु अथवा युग्मनज द्वारा किया जाता है। निषेचित अंडाणु में धागे-सी संरचना अर्थात गुणसूत्रों में निहित होता है। गुणसूत्र प्रत्येक कोशिका के केन्द्रक में उपस्थित होते है। 
सभी मनुष्यों की कोशिकाओं के केन्द्रक में 23 जोड़े गुणसूत्र पाए जाते हैं। इनमें से 2 गुणसूत्र (1 जोड़ी) लिंग-सूत्र हैं जिन्हें X और Y कहते हैं। स्त्री में दो X गुणसूत्र होते हैं जबकि पुरुष में एक X तथा एक Y गुणसूत्र होता है। युग्मक में गुणसूत्रों का एक जोड़ा होता है। 
अनिषेचित अंडाणु में सदा एक X गुणसूत्र होता है। परन्तु शुक्राणु दो पाकर के होते हैं जिनमें एक प्रकार में X गुणसूत्र एवं दूसरे प्रकार में Y गुणसूत्र होता है। 

जब X गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडाणु को निषेचित करता है तो युग्मनज में दो X गुणसूत्र होंगे तथा वह मादा शिशु में विकसित होगा। यदि अंडाणु को निषेचित करने वाला शुक्राणु में Y गुणसूत्र है तो युग्मनज नर शिशु में विकसित होगा।

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