NCERT Notes for Class 8 Science Chapter 2 Microorganisms Friend and Foe | कक्षा 8 विज्ञान अध्याय 2 सूक्ष्मजीव: मित्र एवं शत्रु
NCERT Notes for Class 8 Science Chapter 2 Microorganisms Friend and Foe | कक्षा 8 विज्ञान अध्याय 2 सूक्ष्मजीव: मित्र एवं शत्रु हम हमारे आस-पास कई प्रकार के पेड़-पौधे एवं जीव-जंतुओं को देखते हैं। इनमें से कुछ बहुत विशाल होते है तो कई बहुत ही सूक्ष्म होते है। अतः हम कह सकते हैं कि जीवों में विविधता पायी जाती है। कई जीव तो ऐसे होते है, जो हमारे साथ रहते हैं परन्तु हम उन्हें आँखों से नहीं देख पाते हैं, इन्हें सूक्ष्मजीव के नाम से जाना जाता है। इनमें से कुछ मनुष्य जाति के लिए लाभदायक होते हैं तो कुछ हानिकारक।
NCERT Notes for Class 8 Science Chapter 2 Microorganisms: Friend and Foe
एन सी इ आर टी नोट्स कक्षा 8 विज्ञान अध्याय 2 सूक्ष्मजीव: मित्र एवं शत्रु Science for Class 8
सूक्ष्मजीव Microorganisms
ऐसे जीव जिन्हें बिना सूक्ष्मदर्शी की सहायता से केवल आँखों से नहीं देखा जा सकता है, सूक्ष्मजीव कहलाते हैं। सूक्ष्मजीव हर स्थान पर पाए जाते हैं। मिट्टी एवं पानी में भी कई सूक्ष्मजीव उपस्थित होते हैं।
सूक्ष्मजीवों के प्रकार Types of Microorganisms
सूक्ष्मजीवों को मुख्यतः चार प्रमुख वर्गों में बाँटा गया है, जो निम्न है –
- जीवाणु
- कवक
- प्रोटोज़ोआ
- शैवाल
नोट :- विषाणु (Virus) भी एक प्रकार के सूक्ष्मजीवी है। परन्तु ये अन्य सूक्ष्मजीवों से भिन्न होते हैं क्योंकि ये केवल परपोषी में ही गुणन करते हैं। अर्थात अन्य जीवाणु, पौधों अथवा जंतु की कोशिकाओं में गुणन करते हैं।
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सूक्ष्मजीवों से होने वाले सामान्य रोग Common Diseases Caused by Microorganisms
जीवाणु द्वारा – टायफाइड एवं क्षयरोग (TB)
प्रोटोज़ोआ द्वारा – अतिसार एवं मलेरिया
विषाणु द्वारा – पोलियो एवं खसरा
सूक्ष्मजीवों का आवास Habitat of Microorganisms
एक कोशिकीय सूक्ष्मजीव – जीवाणु, शैवाल एवं प्रोटोज़ोआ
बहुकोशिकीय सूक्ष्मजीव – शैवाल, कवक
सूक्ष्मजीव किसी भी स्थान, किसी भी परिस्थिति में जीवित रह सकते हैं। यह बर्फीली सहित से ऊष्ण (गर्म) स्रोतों तक हर जगह रहते हैं। यह मरुस्थल एवं दलदल में भी पाए जाते हैं । यह मनुष्य सहित सभी जंतुओं के शरीर के अंदर भी पाए जाते हैं।
अमीबा ऐसा सूक्ष्मजीव हैं जो अकेला रह सकता है जबकि कवक एवं जीवाणु समूह में रहते हैं।
सूक्ष्मजीव और मनुष्य Microorganisms and Humans
सूक्ष्मजीवों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। सूक्ष्मजीवों में कुछ तो हमारे लिए लाभदायक होते है और कुछ हानिकारक जो शरीर में रोग उत्पन्न करते हैं।
लाभदायक सूक्ष्मजीव Beneficial Microorganisms
- सूक्ष्मजीवों का हमारे दैनिक जीवन में बहुत उपयोग है। जैसे – दही, ब्रेड एवं केक बनाने में
- पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में – सूक्ष्मजीव कार्बनिक अवशिष्ट जैसे – सब्जियों के छिलके, जंतुओं के अवशेष, उनकी विष्ठा आदि का अपघटन करके हानिरहित पदार्थ बनाते हैं।
- सूक्ष्मजीवों का उपयोग औषधि के उत्पादन में किया जाता है।
- खेती में मृदा की उर्वरकता बढ़ाने के लिए इनके उपयोग किया जाता है जिससे नाइट्रोजन स्थितिकरण होता है।
- दही एवं ब्रेड बनाने में – दूध से दही का निर्माण दूध में पाए जाने वाले लैक्टोबैसिलस नामक जीवाणुओं द्वारा होता है। इसके लिए लैक्टोबैसिलस जीवाणु दूध में जनन करके दूध को दही में बदल देते हैं।
- पनीर (चीज), आचार, एवं अनेक खाद्य पदार्थ का उत्पादन भी जीवाणुओं द्वारा किया जाता है।
- इडली और डोसा बनाने में सहायक – जीवाणु चावल के आटे में तेजी से जनन करते हैं तथा श्वसन के दौरान कार्बन डाईऑक्साइड गैस का उत्पादन करते हैं।
- यह गैस खमीर वाले मैदा का आयतन बढ़ा देते हैं।
- बेकिंग उद्योग में – यीस्ट का उपयोग बेकिंग उद्योग में ब्रेड, पेस्ट्री एवं केक बनाने में किया जाता है।
सूक्ष्मजीवों का वाणिज्यिक उपयोग Commercial use of Microorganisms
एल्कोहल, शराब एवं एसिटिक एसिड के उत्पादन में सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता है। इसके लिए जौ, गेहूँ, चावल, एवं फलों के रस में उपस्थित प्राकृतिक शर्करा में यीस्ट द्वारा एल्कोहल एवं शराब का उत्पादन किया जाता है।
किण्वन Fermentation
किण्वन एक जैव-रासायनिक क्रिया है। इसमें जटिल कार्बनिक यौगिक सूक्ष्म सजीवों की सहायता से सरल कार्बनिक यौगिक में विघटित होते हैं। इस क्रिया में ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं पड़ती है। किण्वन के प्रयोग से चीनी से अल्कोहल या शराब का निर्माण होता है।
सूक्ष्मजीवों के औषधीय उपयोग Medicinal uses of microorganisms
- बीमार पड़ने पर डॉक्टर पेनिसिलिन का इंजेक्शन देते हैं अथवा कोई अन्य प्रतिजैविक की गोली अथवा कैप्सूल देते हैं। इन सभी औषधियों के स्रोत सूक्ष्मजीव हैं। ये शरीर के अंदर पहुँच कर बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देते हैं अथवा उनकी वृद्धि रोक देते हैं। इस प्रकार की औषधि जो बीमारी पहुँचाने वाले सूक्ष्मजीवों को नष्ट करती है, प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक कहलाती है।
- जीवाणुओं एवं कवकों से भी अनेक प्रतिजैविक औषधियों का उत्पादन किया जाता है जिनमें स्ट्रेप्टोमाइसिन, टेट्रासाइक्लिन और एरिथ्रोमाइसिन प्रमुख प्रतिजैविक है।
- पशुओं के आहार, कुक्कुट आहार एवं कुछ पौधों में रोग को रोकने के लिए प्रतिजैविक का उपयोग किया जाता है।
नोट :- अलेक्ज़ेंडर फ्लैमिंग ने फफूँद से पेनिसिलिन नामक औषधि का निर्माण जीवाणु रोग से बचाव के लिए किया था।
प्रतिजैविक दवाइयाँ लेते समय की जाने वाली सावधानियाँ Precautions to be taken while taking antibiotics
- प्रतिजैविक औषधियाँ हमेशा डॉक्टर के परामर्श से ही लेनी चाहिए।
- प्रतिजैविक औषधियाँ तब ही लेनी चाहिए जब उसकी आवश्यकता हो। बिना आवश्यकता के प्रतिजैविक नहीं लेनी चाहिए। ऐसा करने से जान आप बीमार होंगे उस समय प्रतिजैविक औषधियाँ काम नहीं करेगी।
- अनावश्यक रूप से ली गई प्रतिजैविक औषधियाँ शरीर में उपयोगी जीवाणुओं को नष्ट कर देती है।
वैक्सीन (टीका) Vaccine
किसी बीमारी के विरुद्ध प्रतिरोधात्मक क्षमता (immunity) विकसित करने के लिये जो दवा खिलायी/पिलायी या किसी अन्य रूप में दी जाती है उसे टीका (vaccine) कहते हैं तथा यह क्रिया टीकाकरण (Vaccination) कहलाती है। संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिये टीकाकरण सर्वाधिक प्रभावी एवं सबसे सस्ती विधि माना जाता है।
वैक्सीन (टीका) किस प्रकार कार्य करता है How the Vaccine Works
जब रोगकारक सूक्ष्मजीव हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं तो हमारा शरीर उनसे लड़ने के लिए प्रतिरक्षी उत्पन्न करता है। हमारा शरीर पूर्व में हुए रोगों से लड़ने की क्षमता होती है। अतः यदि मृत अथवा निष्क्रिय सूक्ष्मजीवों को स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रविष करवा दिया जाता है तो शरीर की कोशिकाएँ उसी के अनुसार लड़ने के प्रतिरक्षी उत्पन्न करके रोगकारक को नष्ट कर देती हैं। यह प्रतिरक्षी शरीर में सदा के लिए बनी रहती है। इस प्रकार टीका (Vaccine) कार्य करता है।
हैजा, क्षय, चेचक तथा हैपेटाइटिस जैसी अनेक बीमारियों को वैक्सीन (टीके) द्वारा रोका जा सकता है।
नोट :- एडवर्ड जेनर 1798 में चेचक के टीके की खोज की थी।
मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि increase soil fertility
कुछ जीवाणु एवं नील-हरे शैवाल वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर मृदा में नाइट्रोजन का संवर्धन करते हैं, जिससे मृदा की उर्वरता में वृद्धि होती है। यौगिकों के रूप में उपस्थित नाइद्रोजन स्थिर नाइट्रोजन (Fixed nitrogen) कहलाता है। अतः वायुमण्डल के मुक्त नाइट्रोजन गैस को नाइट्रोजन के यौगिकों के रूप में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कहा जाता है। प्राकृतिक विधि: लेग्यूमिनस (Leguminous family) के पौधों की जड़ों में गांठे उपस्थित होती हैं।
पर्यावरण का शुद्धिकरण clean the environment
सूक्ष्मजीव मृत जीव, सड़े-गले पादप एवं मृत जैविक अवशिष्ट का अपघटन कर के उन्हें सरल योगिक में परिवर्तित कर देते हैं, जो अन्य पौधों एवं जंतुओं द्वारा पुनः उपयोग में ले लिया जाता है। इस प्रकार सूक्ष्मजीव हानिकारक एवं दुर्गन्धयुक्त पदार्थों को सरल पदार्थ में बदल कर पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं।
हानिकारक सूक्ष्मजीव harmful microorganisms
ऐसे सूक्ष्मजीव जो मनुष्य, जंतुओं एवं पादपों में रोग उत्पन्न करते हैं, हानिकारक सूक्ष्मजीव की श्रेणी में आते हैं।
रोगाणु (रोगजनक) – ऐसे सूक्ष्मजीव जो मनुष्य, जंतुओं अथवा पादपों में रोग उत्पन्न करते हैं, रोगाणु या रोगजनक कहलाते हैं।
कुछ सूक्ष्मजीव भोजन, कपड़ों एवं चमड़े की वस्तुओं को भी संदूषित कर देते हैं।
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मनुष्य में रोगकारक सूक्ष्मजीव pathogenic microorganisms in humans
मनुष्य में सूक्ष्मजीव जल, भोजन, वायु अथवा सीधे संपर्क के द्वारा शरीर में प्रवेश करते है। ये सूक्ष्मजीव एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में वायु, जल, भोजन अथवा संपर्क द्वारा पहुँच जाते हैं।
संचरणीय रोग communicable diseases
ऐसे रोग जो एक संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में वायु, जल, भोजन अथवा कायिक संपर्क द्वारा फैलते हैं, संचरणीय रोग कहलाते हैं।
जुकाम से पीड़ित व्यक्ति को छींकते अथवा खांसते समय मुँह एवं नाक पर रुमाल रखना चाहिए। क्योंकि जब रोगी छींकता है तो सूक्ष्म बूंदों के साथ हज़ारों रोगकारक वायरस भी वायु में आ जाते है और वायु के माध्यम से स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
संचरणीय रोग के उदाहरण – हैजा, सामान्य सर्दी-जुकाम, चिकनपॉक्स एवं क्षय रोग।
घरेलु मक्खी – यह भी रोगकारक सूक्ष्मजीवों के रोग-वाहक का कार्य करती है। यह कूड़े एवं जंतु के अपशिष्ट पर बैठती है तो रोगकारक सूक्ष्मजीव इनके शरीर से चिपक जाते हैं। जब मक्खी बिना ढके भोजन पर बैठती है तो वह रोगाणु भोजन पर आ जाते है और ऐसा दूषित भोजन करने से व्यक्ति बीमार पड़ जाता है। अतः भोजन को हमेशा ढककर एवं स्वच्छ स्थान पर रखना चाहिए।
मच्छर – मादा एनॉफ्लीज मच्छर मलेरिया नामक रोग का वाहक है। यह प्लैज्मोडियम नामक मलेरिया परजीवी द्वारा होता है।
मादा एडिस मच्छर डेंगू का वाहक है।
डेंगू का नियंत्रित control of dengue
- पानी को कहीं भी रुका नहीं रहने देना चाहिए।
- कूलर, टायरों एवं फूलदानों इत्यादि में जल को एकत्र न होने दें।
- अपने आस-पास के स्थानों को स्वच्छ एवं शुष्क रखें।
- समय-समय नालियों की सफाई करें।
- कीटनाशी का छिड़काव करें।
मनुष्य में सूक्ष्मजीव से होने वाले सामान्य रोग एवं बचाव के उपाय Common diseases caused by microorganisms in humans and preventive measures
मानव रोग | रोगकारक सूक्ष्मजीव | संचरण का तरीका | बचाव के उपाय |
क्षयरोग | जीवाणु | वायु | रोगी व्यक्ति को पूरी तरह से अन्य व्यक्तियों से अलग रखना। रोगी की व्यक्तिगत वस्तुओं को अलग रखना। उचित समय पर टीकाकरण करवाना। |
खसरा (Measles) | वायरस | वायु | |
चिकनपॉक्स | वायरस | वायु अथवा सीधे सम्पर्क से | |
पोलियो | वायरस | वायु अथवा जल | |
हैजा | जीवाणु | जल अथवा भोजन | व्यक्तिगत स्वच्छता एवं अच्छी आदतों को अपनाना। भलीभांति पके भोजन, उबला पेयजल एवं टीकाकरण। |
टाइफाइड | जीवाणु | जल | |
हैपेटाइटिस-ए | वायरस | जल | उबले हुए पेय जल का प्रयोग, टीकाकरण। |
मलेरिया | प्रोटोज़ोआ | मच्छर | मच्छरदानियों का प्रयोग, मच्छर भगाने वाले रसायन का प्रयोग, कीटनाशक का छिड़काव एवं मच्छर के प्रजनन रोकने के लिए जल को किसी भी स्थान पर एकत्र न रहने देना। |
जंतुओं में रोगकारक जीवाणु pathogenic bacteria in animals
एंथ्रेक्स – मनुष्य एवं मवेशियों में होने वाला जीवाणु जनित रोग।
गाय में खुर एवं मुँह का वायरस जनित रोग।
पौधों में रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीव disease causing microorganisms in plants
पादप रोग | सूक्ष्मजीव | संचरण का तरीका |
नींबू कैंकर | जीवाणु | वायु |
गेहूँ | कवक | वायु एवं बीज |
भिंडी की पीत | वायरस | कीट |
खाद्य विषाक्तन (Food Poisoning)
फूड पाइजनिंग को खाद्य जनित बीमारी (फूडबोर्न इलनेस) के नाम से भी जाना जाता है, जो दूषित खाद्य पदार्थों का सेवन करने से होती है। संक्रामक जीव जैसे बैक्टीरिया, वायरस और परजीवी आदि या उनके द्वारा दूषित किए गए भोजन का सेवन करना फूड पाइजनिंग का सबसे सामान्य कारण होता है।
संक्रामक जीव या उनके विषाक्त पदार्थ, खाद्य पदार्थों को उत्पादन करने से बनाने तक किसी भी समय दूषित कर सकते हैं। अगर भोजन को ठीक तरीके से बनाया या संभाला ना जाए तो भी वह दूषित हो सकता है। इसके सेवन से व्यक्ति भयंकर रूप से रोगी हो सकता है अथवा कभी-कभी उसकी मृत्यु भी हो सकती है। अतः यह आवश्यक है कि हम भोजन को संदूषित होने से बचाएँ।
खाद्य परिरक्षण food preservation
हम जानते हैं कि खाद्य सामग्री को यदि कुछ दिनों तक काम में न लिया जाए तो सूक्ष्मजीव उस पर आक्रमण कर उसे दूषित कर देते हैं। जिससे उसमे दुर्गन्ध आने लगती है, इसका स्वाद भी ख़राब हो जाता है तथा रंग-रूप में भी परिवर्तन आ सकता है।
खाद्य परिरक्षण खाद्य को उपचारित करने और संभालने की एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे उसके खराब होने (गुणवत्ता, खाद्यता या पौष्टिक मूल्य में कमी) की उस प्रक्रिया को रोकता है या बहुत कम कर देता है, जो सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा होती या तेज कर दी जाती है।
उदाहरण – आम का आचार
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खाद्य परिरक्षण करने के तरीके Food Preservation Methods
परिरक्षक Preservative
वे पदार्थ जो खाद्य सामग्री को सड़ने एवं संदूषित होने से रोकते हैं, परिरक्षक कहलाते हैं।
रसायनो द्वारा by chemicals
नमक एवं खाद्य तेल की मदद से सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को रोका जा सकता है। इनका प्रयोग अचार में किया जाता है। जैम तथा स्क्वैश बनाने में सोडियम बेंजोएट तथा सोडियम मेटाबाइसल्फाइट परिरक्षकों का उपयोग किया जाता है।
नमक द्वारा परिरक्षण preservation by salt
मांस एवं मछली को परिरक्षित करने के लिए नमक का उपयोग काफी समय से किया जा रहा है। मांस एवं मछली को सूखे नमक से ढकने से जीवाणुओं की वृद्धि नहीं होती है। इसके अलावा नमक का उपयोग आम, आँवला एवं इमली के परिरक्षण में भी किया जाता है।
चीनी द्वारा परिरक्षण preservation by sugar
जैम, जेली एवं स्क्वैश का परिरक्षण चीनी द्वारा किया जाता है। जिससे जीवाणुओं की वृद्धि नहीं हो पाती है।
तेल एवं सिरके द्वारा परिरक्षण Oil and Vinegar Preservation
तेल एवं सिरके द्वारा आचार का परिरक्षण किया जाता है। सब्जियों, फलों, मछली तथा मांस का परिरक्षण भी इसी विधि द्वारा किया जाता है।
गर्म एवं ठंडा करके परिरक्षण hot and cold shielding
इस विधि में खाद्य सामग्री को पहले गर्म किया जाता है। जिससे उसमे मौजूद सभी सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं। तत्पश्चात इसे रेफ्रिजरेटर में काम ताप पर रख दिया जाता है। कम ताप पर सूक्ष्मजीव वृद्धि नहीं करते हैं।
पाश्चुरीकरण pasteurization
पाश्चुरीकरण एक ऐसी तकनीक है जिसमें भोज्य पदार्थों को निश्चित तापमान तक गर्म किया जाता है और उसे जल्दी से ठंडा कर दिया जाता है जिसके फलस्वरूप उसमें उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। जब भोज्य पदार्थ में अचानक तापमान परिवर्तन होता है तो सूक्ष्म जीव उसे सहन नहीं कर पाते हैं और वे नष्ट हो जाते हैं।
दूध को उच्चताप तक गर्म करके तुरन्त ठंडा किया जाता है इस प्रक्रिया में दूध को दूषित करने वाले जीवाणु मर जाते है यह क्रिया पाश्चुरीकरण कहलाती है। इस विधि का उपयोग दूध को लम्बे समय तक दूषित होने से बचाने के लिए करते हैं।
पाश्चुरीकरण की प्रक्रिया में दूध को कम समय के लिए उच्च तापमान पर लगभग 70 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया जाता है, जिससे दूध में मौजूद जीवाणु मर जाते हैं। पाश्चुराइज्ड दूध से किसी प्रकार के संक्रमण का खतरा नहीं रहता है। दूध में पानी मिलाने से उसमें मौजूद सभी पोषक तत्वों की सांद्रता कम हो जाती है।
भण्डारण एवं पैकिंग Storage & Packing
आजकल खाद्य सामग्रियों को वायुरोधी सील किये पैकेटों में बेचा जा रहा है। जिससे वे सूक्ष्मजीवों से सुरक्षित रहते हैं।
नाइट्रोजन स्थिरीकरण nitrogen fixation
लेग्यूम पौधों (दलहन) की ग्रंथिकाओं में पाए जाने वाले राइजोबियम जीवाणु नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक होते हैं। जैसे सेम और मटर जो एक सहजीवता है।
कभी-कभी तड़ित विद्युत द्वता भी नाइट्रोजन का स्थिरीकरण हो जाता है।
नाइट्रोजन चक्र nitrogen cycle
वायुमण्डल में 78% नाइट्रोजन गैस है। यह सभी जीवों के लिए आवश्यक है जो प्रोटीन, पर्णहरित (क्लोरोफिल) न्यूक्लिक एसिड एवं विटामिन में उपस्थित होता है।
पौधे एवं अन्य जीव वायुमण्डल में उपस्थित नाइट्रोजन का उपयोग सीधे नहीं कर पाते हैं। अतः मिट्टी में उपस्थित जीवाणु व नील-हरित शैवाल वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके नाइट्रोजन यौगिकों में परिवर्तित कर देते हैं। जिसका उपयोग मिट्टी में जड़ तंत्र द्वारा कर लिया जाता है। इसके पश्चात् अवशोषित नाइट्रोजन का उपयोग प्रोटीन एवं अन्य यौगिकों के संश्लेषण में करते हैं। पोधो पर निर्भर करने वाले जंतु उनसे प्रोटीन एवं अन्य नाइट्रोजनी योगिक प्राप्त करते हैं।
जब पौधों एवं जंतुओं की मृत्यु हो जाती है, तब मिट्टी में उपस्थित जीवाणु एवं कवक नाइट्रोजनी अपशिष्ट को नाइट्रोजनी यौगिकों में परिवर्तित कर देते हैं जो पौधों द्वारा पुनः उपयोग कर ली जाती है तथा कुछ विशिष्ट जीवाणु नाइट्रोजनी यौगिकों को नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित कर देते है जो वायुमण्डल में चली जाती है। जिससे वायुमंडल में नाइट्रोजन की मात्रा लगभग स्थिर बनी रहती है।