NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Lesson 1 | कक्षा – 8 प्रथम: पाठ: सुभाषितानि अभ्यास: प्रश्नम् एवं हिन्दी अनुवाद
NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 8 SANSKRIT
एन.सी.ई.आर.टी. समाधान
पाठ का हिन्दी अनुवाद :
गुणा। …… …… ……. …… ….. ….. …… ….. …… …… …… भवन्त्यपेया: ।।1।।
अर्थ :- गुणवान व्यक्तियों के साथ रहने पर गन प्राप्त होते है और निर्गुणो के साथ रहने पर गन दोष में बदल जाते है, जैसे नदी का पानी मीठा और स्वादिष्ट होता है, परन्तु जब नदी का पानी सागर में जाकर मिलता है तो वह पीने योग्य नहीं होता है।
साहित्यस …… ……. ……. ……. ……. ……. ……. ……. ……. पशूनाम: ।।2।।
अर्थ :- साहित्य, संगीत और कला से रहित व्यक्ति साक्षात पशु के समान होता है जिसके पूंछ और सींग नहीं होते हैं। वह घास नहीं खता इसलिए यह पशुओं के लिए भाग्य की बात है।
लुब्धस्य …… ……. ……. ……. ……. ……. ……. ……. ……. नराधिपस्य ।।3।।
अर्थ :- लोभी व्यक्ति का यश नष्ट हो जाता है, चुगल खोल कि मित्रता और जो कार्य नहीं करता उसका कुल, जो धन का सदुपयोग नहीं करता उसका धर्म, बुरी लत वालों की विद्या, कंजूस के मित्र या साथी और उस राजा का राज्य भी नष्ट हो जाता है जिसके मंत्री अपना काम ठीक से नहीं करते है।
पीत्वा …… ……. ……. ……. ……. ……. ……. ……. ……. सृजन्ति ।।4।।
अर्थ :- मधुमक्खी कड़वे और मीठे फलों से समान रूप से रस लेकर शहद बनाती है वैसे ही मनुष्य को भी सज्जनों और दुर्जनों से अच्छी बाते ही ग्रहण करनी चाहिए।
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विहाय …… ……. ……. ……. ……. ……. ……. ……. ……. वायसा: ।।5।।
अर्थ :- जिस प्रकार महल में स्थित शेर की मूर्ति पर कौए बैठे रहते है वैसे ही जो मनुष्य परिश्रम को छोड़कर भाग्य के भरोसे रहता है उसके काम सफल नहीं होते है।
पुष्प …… ……. ……. ……. ……. ……. ……. ……. ……. नार्थीन: ।।6।।
अर्थ :- पेड़, फूल, पत्ते, फल, छाया और लकड़ी देकर किसी याचक को संतुष्ट करते है वे सभी की मनोकामनाओं को पूर्ण करते है, इसलिए पेड़ को धन्य कहा गया है।
चिन्तनीया …… ……. ……. ……. ……. ……. ……. ……. ……. गृहे ।।7।।
अर्थ :- विपत्ति आने से पहले ही उसके बचने के उपाय सोच लेना चाहिए क्योंकि आग लग जाने पर कुआँ खुदवाने से कोई फायदा नहीं होता है।
अभ्यास:
1. पाठे दत्तानां पद्यानां स्वरवाचनं कुरुत।
2. श्लोकांशेषु रिक्तस्थानानि पुरयत –
(क) समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेया:।
(ख) श्रुत्वा वच: मधुरसूक्तरसं सृजन्ति।
(ग) तद्भागधेयं परम पशुनाम्।
(घ) विद्याफलं व्यसनिन: कृपणस्य।
(ङ) पौरुषं विहाय य: दैवमेव अवलम्बते।
(च) चिन्तनीया हि विपदाम् आदावेव प्रतिक्रिया:।
3. प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत –
(क) व्यसनिन: किं नश्यति ?
उत्तरम् – विद्याफलं
(ख) कस्य यश: नश्यति ?
उत्तरम् – लुब्धस्य
(ग) मधुमक्षिका किं जनयति ?
उत्तरम् – मधुं
(घ) मधुरसूक्तरसं के सृजन्ति ?
उत्तरम् – मधुमक्षिका
(ङ) अर्थिन: केभ्य: विमुखा न यान्ति ?
उत्तरम् – महीरुहा:
4. अधोलिखित-तद्भव-शब्दानां कृते पाठात् चित्वा संस्कृतपदानि लिखत –
यथा – कंजूस कृपण:
कड़वा कटुकं
पूँछ पुच्छ
लोभी लुब्धस्य
मधुमक्खी मधुमक्षिका
तिनका तृणं
5. अधोलिखितेषु वाक्येषु कृतपदं क्रियापदं च चित्वा लिखत –
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यथा – सन्त: मधुरसुक्तरासं सृजन्ति
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(क) निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषा:।
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(ख) गुणज्ञेषु गुणा: भवन्ति।
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गुणा: |
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(ग) मधुमक्षिका माधुर्यं जनयेत्। |
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(घ) पिशुनस्य मैत्री यश: नाशयति। |
पिशुनस्य |
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(ङ) नद्य: समुद्रमासाद्य अपेया: भवन्ति। |
नद्य: |
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6. रेखङ्कितानी पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(क) गुणा: गुणज्ञेषु गुणा: भवन्ति।
प्रश्न – के गुणज्ञेषु गुणा: भवन्ति?
(ख) नद्य: सुस्वादुतोया: भवन्ति।
प्रश्न – का:
(ग) लुब्धस्य यश: नश्यति।
प्रश्न – कस्य
(घ) मधुमक्षिका मधुर्यमेव जनयति।
प्रश्न – का
(ङ) तस्य मूर्ध्नि तिष्ठन्ति वायसा:।
प्रश्न – कस्मिन्
7. उदाहरणानुसारं पदानि पृथक कुरुत –
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माधुर्यमेव |
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सर्वमेव |
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महात्मनामुक्ति: |
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