हिन्दी लोकोक्तियाँ व कहावतें
समाज में प्रचलित व समाज द्वारा स्वीकृत की गई उक्ति या कथन कालान्तर में लोकोक्तियाँ या कहावतें Lokoktiyan/Kahawaten बन गई। ये जान साधारण की अनुभव पर आधारित संक्षिप्त कथन है। लोकोक्तियों में ‘गागर में सागर’ भरने की क्षमता होती है। हिन्दी कहावतें तथा लोकोक्तियाँ आज भी उतनी ही प्रचलित है जितनी की इनका निर्माण होने के समय थी। जब भी वाक्य में इनका प्रयोग किया जाता है, तो ये वाक्य न बनकर बिल्कुल अलग व अपरिवर्तित रहते है। कहावतें तथा लोकोक्तियाँ Lokoktiyan/Kahawaten हिंदी साहित्य/भाषा की अमूल्य धरोहर है।
परीक्षा की दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण लोकोक्तियाँ यहाँ दी जा रही है –
अंत भले का भला – अच्छे कार्य का परिणाम अच्छा ही होता है।
अंधेर नगरी चौपट राजा – हर तरफ अव्यवस्था।
अंधी पीसे कुत्ता खाय – कार्य कोई करे फल किसी और को मिले।
अँधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपनों को ही देत – हर बार अपनों को ही लाभ पहुँचाना।
अंधे के हाथ बटेर लगना – अयोग्य व्यक्ति को बिना प्रयास के कोई विशेष वस्तु मिल जाना।
अंधा क्या चाहे दो आँखे – बिना प्रयास चाही गई वस्तु मिल जाना।
अंधों में काना राजा – गुणहीन लोगों में थोड़े गुणों वाले व्यक्ति बहुत गुणवान माना जाता है।
अपना हाथ जगन्नाथ – खुद से किया गया कार्य सबसे अच्छा।
अपनी करनी पार उतरनी – मनुष्य को अपने कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है।
अक्ल बड़ी या भैंस – शारीरिक बल से बुद्धि अच्छी होती है।
अधजल गगरी छलकत जाय – ओछे व्यक्ति दिखावा बहुत करते है।
अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग – सबके विचार, सोच और कार्यशैली अलग-अलग होते है।
अरहर की टट्टी गुजरती ताला – बेमेल वस्तुओं का साथ।
आप भला तो जग भला – अच्छे के साथ सब अच्छा ही व्यवहार।
आ बैल मुझे मार – जान-बूझकर मुसीबत मोल लेना।
आँख का अंधा नाम नयनसुख – गुण के विपरीत नाम होना।
आम के आम गुठलियों के दाम – दोहरा लाभ होना।
आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास – अपने लक्ष्य से भटक जाना।
इधर कुँआ उधर खाई – दोनों तरफ संकट।
ईश्वर की माया कही धूप कही छाया – भाग्य की विचित्रता।
ऊँट के मुँह में जीरा – आवश्यकता से बहुत कम पूर्ति।
ऊँट रे ऊँट तेरी कौन सी कल सीधी – सभी अवगुणों से युक्त।
ऊँची दूकान फीके पकवान – नाम के अनुरुप कार्य न करना।
एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी – दोषी होकर भी दूसरों पर रौब दिखाना।
एक पंथ दो काज – एक काम से दोहरा लाभ।
एक अनार सौ बीमार – कम वस्तु और चाहने वाले अनेक।
एक तो गिलोय फिर नीम चढ़ी – बुरा व्यक्ति कुसंगति में और बुरा बन जाता है।
एक और एक ग्यारह होना – एकता में बड़ी शक्ति होना।
एक तो करेला फिर नीम चढ़ा – बुरा व्यक्ति कुसंगति में और बुरा बन जाता है।
ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना – कार्य आरम्भ करने के बाद आने वाली मुसीबत से न घबराना।
ओछे की प्रीत बालू की भीति – दुष्ट व्यक्ति का प्रेम अस्थिर होता है।
कंगाली में आता गीला होना – मुसीबत में और मुसीबत आना।
कहे खेत खलियान की – कुछ का कुछ सुनना।
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानमती ने कुनबा जोड़ा – अनावश्यक वस्तुओं से कोई वस्तु बनाना।
कहने से कुम्हार गधे पर नहीं बैठता – ज़िद्दी व्यक्ति किसी का कहना नहीं मानता।
कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली – अत्यधिक बलवान व्यक्ति से भीड़ जाना।
काला अक्षर भैस बराबर – बिलकुल अनपढ़।
काठ की हांड़ी बार-बार नहीं चढ़ती है – व्यक्ति को एक बार ही मुर्ख बनाया जा सकता है।
कूद-कूद मछली बगुले को खाय – विपरीत कार्य करना।
खग ही जाने खग – जो जिसकी संगती में रहता है उसी की बात समझता है।
खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे – शर्मिंदा होकर दूसरों पर क्रोध निकलना।
गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज – ढोंग करना।
घर की मुर्गी दाल बराबर – घर की चीज का आदर नहीं होता।
घर का भेदी लंका ढाये – आपसी फूट से सर्वनाश हो जाता है।
चाँदी देखे चाँदना, सुख देखे व्यवहार – सम्पत्ति के सभी सगे होते है।
चोर की दाढ़ी में तिनका – दोषी व्यक्ति को हमेशा डर रहता है।
छछूंदर के सिर में चमेली का तेल – अयोग्य व्यक्ति को अच्छी वस्तु मिल जाना।
छोटा मुँह और बड़ी बात – अपनी योग्यता से बढ़कर बात करना।
जंगल में मोर नाचा किसने देखा – ऐसे स्थान पर कार्य करना जिसका लाभ किसी को न हो।
जिस थाली में खाये उसी में छेद करे – कृतघ्न व्यक्ति।
जिसकी लाठी उसकी भैंस – बलवान की ही जीत होती है।
जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठि – परिश्रम करने पर ही सफलता मिलती है, बिना परिश्रम के नहीं।
जो गरजते है वो बरसते नहीं – जो बड़ी-बड़ी बातें बोलते है, वे काम नहीं कर सकते।
ढाक के तीन पात – सदैव एक सी स्थिति
डूबते को तिनके का सहारा – मुसीबत आने पर थोड़ी बहुत सहायता भी बहुत है।
तबेले की बला बन्दर के सर – दोष कोई करे सज़ा कोई और पाये।
तीन लोक से मथुरा न्यारी – सबसे अलग और अनोखा।
तेल देखो तेल की धार देखो – धैर्य के साथ सोच समझकर कार्य करना चाहिए।
तेते पाँव पसारिये जैती लंबी सौर – जितनी आमदनी हो उसी हिसाब से खर्च करना चाहिए।
थोथा चना बाजे घना – छोटा आदमी बहुत इतराता है। या सार कम आडम्बर अधिक।
दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते – मुफ्त में मिली वस्तु में गुण-दोष नहीं देखे जाते है।
दीवारों के भी कान होते है – गुप्त बात करते समय अत्यधिक सावधानी रखनी चाहिए।
दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है – एक बार धोखा खाने के बाद व्यक्ति और सतर्क हो जाता है।
देखें ऊँट किस ओर करवट बैठता है – देखें क्या फैसला आता है।
दे पानी में आग दमालो दूर खड़ी – क्लेश का बीज बोकर तमाशा देखना।
धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का – अस्थिरता के कारण कही का न रहना।
नई घोषन कंडो का तकिया – अनुभवहीन व्यक्ति द्वारा अजीब हरकत करना।
न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी – किसी झगड़े के कारण को नष्ट कर देना।
अंधे को न्यौते न दो जाने आते – न ऐसा कार्य करते न मुसीबत आती।
नाच न जाने आँगन टेढ़ा – अपनी कुशलता को छिपाने के लिए बहाने करना।
ना ऊधो का लेना ना माधो को देना – किसी झंझट में नहीं पड़ना।
ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी – किसी कार्य को करने के बदले असंभव शर्त रख देना।
रोटी के बदले रोटी, का छोटी का मोटी – सभी लगभग एक समान होना।
सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली – ज़िंदगी भर पाप करने के बाद अंत में संत बनना।
बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद – मुर्ख व्यक्ति विद्वान व्यक्तियों की बातों को नहीं समझते।
बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले ना धूरि – माँगने से कुछ नहीं मिलता।
बिल्ली के भाग से छींका टूटना – अस्कमात कार्य होना।
पत्थर को जोंक नहीं लगती – हठी व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
मरे बिना स्वर्ग नहीं – स्वयं प्रयत्न करने पर ही कार्य बनता है।
मान न मान मैं तेरा मेहमान – जबरदस्ती गले पड़ना।
मुर्गा बाग नहीं देगा तो क्या सुबह नहीं होगी – किसी एक व्यक्ति के ना होने से कार्य नहीं रुकता।
लकड़ी के बल बंदर नाचे – भय से सभी कांपते है।
सावन हरे ना भादो सूखे – सदा एक समान।