Living Things and Non Living Things | सजीव एवं निर्जीव
Living things and non living things In our environment both living things and non-living things are found all around us. Some we can see, some we cannot see. So today we are discuss about living things and non living things. Our expert team try to explain it very easy method. Soon we provide living things and non living things in PDF.
Living Things and Non Living Things
हम हमारे आस-पास के परिवेश में कई वस्तुएँ देखते है, जिनमें वृक्ष, आरोही-लता, विसर्पी लता, छोटे-बड़े जंतु, पक्षी, कीट, चट्टान, पटरहार, मिट्टी, जल, वायु सुखी पत्तियाँ आदि दिखाई देते हैं। यदि हम अपने चरों ओर पाई जाने वाली वस्तुओं के बारे में विचार करते है तो हम इन्हे दो समूहों में बाँट देते है।
(1) सजीव Living (2) निर्जीव Non-Living
(1) Living things
सजीव Living things : जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है, ऐसे जीव जिनका एक निश्चित जीवन होता है, सजीव कहलाते है। ऐसे जीव या ऐसी वस्तुओं में विभिन प्रकार की जैविक क्रियाएँ जैसे श्वसन, उत्सर्जन, प्रजनन, उपापचय, गति आदि होते है, सजीव कहलाते है।
सजीवों के उदाहरण – मनुष्य, बन्दर, मछली, आम का पेड़। गुलाब का पौधा तथा विभिन्न प्रकार के जंतु ओर पौधे
(2) Non Living Things
निर्जीव Non Living Things : ऐसे पदार्थ या वस्तुएँ जिनका एक निश्चित जीवन काल नहीं होता है, जिनमे कोई भी जैविक क्रियाएँ नहीं होती है, निर्जीव कहलाते है।
निर्जीव के उदाहरण – कंकड़, पत्थर, कुर्सी, मेज आदि।
नोट – वायरस एक अपवाद है जो न तो सजीव है ओर न ही निर्जीव है।
Characteristics of Living Beings
सजीवों में पाए जाने वाले लक्षण
यहाँ पर हम सजीवों के उन लक्षणों के बारे में चर्चा करेगें जो इन्हें निर्जीवों से अलग करते है। सजीवों में पाए जाने वाले विभिन्न लक्षण निम्न है –
(i) सजीवों को भोजन की आवश्यकता होती है : सभी जीवों को भोजन की आवश्यकता होती है। मनुष्य अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकता है। यह भोजन के लिए दूसरे जीवों या पेड़-पौधों पर निर्भर रहते है ओर उन्ही के द्वारा अपना भोजन प्राप्त करते है।
ऐसे जीव जो भोजन के लिए दूसरे जीवों या पेड़-पौधों पर निर्भर रहते है, विषमपोषी कहलाते है। जैसे मनुष्य, बन्दर, गाय आदि।
इसके विपरीत पोषे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते है। अतः इन्हे स्वयंपोषी कहा जाता है। जैसे – विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे।
भोजन सजीवों को उनकी वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है। सजीवों को उनके अंदर होने वाले अन्य जैव-प्रक्रमों के लिए भी ऊर्जा की आवश्यकता है।
(ii) सजीवों में वृद्धि होती है : मनुष्य धीरे-धीरे वृद्धि करते हुए वयस्क बन जाता है। इसी प्रकार पेड़-पौधे भी वृद्धि कर वयस्क हो जाते है। अतः पेड़-पौधे भी वृद्धि करते है। एक छोटा पौधा कुछ दिनों-सप्ताह में वृद्धि की विवहिन्न स्थितियों से गुजरकर वृद्धि करता है। उसके आकर व लम्बाई में वृद्धि होती है। अतः हम कह सकते है कि सभी सजीव वृद्धि करते है।
(iii) सजीव श्वसन करते है : हम बिना श्वसन के जीवित नहीं रहे सकते हैं। श्वसन कि क्रिया के फलस्वरूप जब हम श्वास लेते है तो बहरी वायु अंदर की ओर शरीर में प्रवेश कर जाती है और जब हम स्वास छोड़ते है तो अंदर की वायु बाहर की ओर निकल जाती है। स्वास लेना श्वसन क्रिया का एक हिस्सा है। श्वसन में अंदर ली गई वायु की ऑक्सीजन की कुछ मात्रा का उपयोग होता है। इस क्रिया में बनी कार्बन डाइऑक्साइड को हम श्वास द्वारा बाहर निष्कासित कर देते हैं।
अन्य जंतुओं जैसे गाय, भैंस, कुत्ता, बिल्ली आदि में भी श्वसन की क्रिया मनुष्य के समान ही होती है।
श्वसन सभी सजीवों के लिए आवश्यक है। ग्रहण किये गौए भोजन से श्वसन के द्वारा ही हमारे शरीर को ऊर्जा मिलती है।
कुछ जंतुओं में गैस का आदान-प्रदान का तरीका भिन्न हो सकता है। जैसे – केंचुएं में त्वचा द्वारा श्वसन होता है, मछलियों (व्हेल व सील को छोड़कर) श्वसन गिल्स द्वारा होता है। अमीबामे बाह्य सतह द्वारा, मनुष्यों में फेफड़ों द्वारा तथा मच्छर में श्वासनली (ट्रेकिया) द्वारा श्वसन होता है।
पौधों में भी श्वसन क्रिया होती है। इस क्रिया में गैसों का आदान-प्रदान मुख्यत: उनकी पत्तियों द्वारा किया जाता है। पत्तियाँ सूक्ष्म रंध्रों द्वारा वायु को अंदर लेती है तथा ऑक्सीजन का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड वायु में निष्कासित कर देती है।
(iv) सजीवों मे उद्दीपन के प्रति प्रतिक्रिया होती है : सजीवों के सरीर में उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थ को शरीर से बाहर निकलने के प्रक्रम को उत्सर्जन कहते है। मनुष्य में उत्सर्जन तंत्र, त्वचा, फेफड़े, यकृत तथा बड़ी आंत द्वारा उत्सर्जन का कार्य किया जाता है।
मेंढक में ब्रिक द्वारा, अमीबा में कुंचनशील धानी द्वारा, पक्षियों में गुर्दे द्वारा उत्सर्जन होता है।
पेड़-पौधों में भी उत्सर्जन होता है जो बिन्दुस्त्राव, रसस्राव, वाष्पोत्सर्जन, द्वितीयक उपापचयी विधियों द्वारा होता है।
(v) सजीव प्रजनन करते है : हम जानते है कि बंदर के बंदर का बच्चा, मनुष्य के मनुष्य का बच्चा, नीम के पेड़ के नीम का पौधा ही जन्म लेते हैं। अर्थात अपने समान ही जीवों को उत्पन्न करते है। सजीव अपनी उत्तरजीविता को बचने के लिए अपने समान ही जीवों को उत्पन्न करते है, जिसे प्रजनन कहते है।
कुछ जंतु अंडे देते है, जिन्हें अंडप्रजक जंतु कहते है। फिर उन अण्डों में से बच्चे बाहर निकलते है। जबकि कुछ जंतु सीधे अपने समान शिशुओं को जन्म देते हैं, जिन्हे जरायुज जंतु कहते है।
जंतुओं में प्रजनन कि तीन प्रमुख विधियाँ होती है।
(a) लैंगिक जनन (b) अलैंगिक जनन (c) कायिक जनन (किण्वन)
पौधों में भी जनन होता है। नए पौधों का जन्म बीज द्वारा या फिर पौधे के किसी कायिक भाग द्वारा कि जा सकती है। आलू कि कलिका वाले हग से नए पौधे का निर्माण, गुलाब या मेहँदी कि कलम द्वारा नया पौधा विकसित होना।
(vi) सजीव गति करते है : एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने या शरीर में किसी भी प्रकार कि हलचल गति कहलाती है। जंतुओं व पौधों दोनों में ही गति का पाया जाना सजीवता का इ अभिलाक्षणिक लक्षण है।
जंतुओं में पैरो द्वारा, पदाभ द्वारा या फिर पक्षमाभिकाओं द्वारा गति होती है। इसी प्रकार पौधों में पुष्प का खिलना, जड़ों द्वारा खनिज लवणों का अवशोषण आदि गति के उदाहरण हैं।
(vii) सजीवों में उपापचय क्रियाएँ होती है : सजीवों में उपापचयी क्रियाएँ होती है जिनमे अपचयन व उपचयन प्रमुख है।
(viii) सजीव सवेदनशील होते है
(xi) सजीवों की मृत्यु होती है : जिस सजीव का जन्म होता है उसकी मृत्यु निश्चित है। सजीवों का जीवन काल अलग-अलग जंतुओं और पेड़-पौधों में अलग-अलग होता है। किसी में यह कुछ घंटो, दिनों, महीनो, सालों में होता है तो किसी जिव का जीवन काल सैंकड़ो वर्ष भी होता है।
सजीव और निर्जीव में अंतर
क्र. सं. | लक्षण | सजीव | निर्जीव |
1. | प्रजनन | सजीवों में प्रजनन पाया जाता है। जिसके द्वारा ये अपनी उत्तरजीविता को बनाये रखते है। | प्रजनन नहीं पाया जाता है। |
2. | उत्सर्जन | सजीवों में अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकलने के लिए उत्सर्जन अंग या तंत्र पाया जाता है। | कोई उत्सर्जन अंग या तंत्र नहीं पाया जाता है। |
3. | कोशिकीय संगठन | प्रत्येक सजीव में एक निश्चित प्रकार का कोशिकाओं का संगठन पाया जाता है। जिनसे ऊतक, अंग और शरीर का निर्माण होता है। | कोई कोशिकीय संगठन नहीं पाया जाता है। |
4. | वृद्धि | सजीवों में वृद्धि पायी जाती है। | निर्जीवों में वृद्धि नहीं पायी जाती है। |
5. | भोजन (पोषण) | सजीवों को जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। | क्योंकि निर्जीव जीवित ही नहीं होते है अतः इन्हे भोजन की आवश्यकता नहीं होती है। |
6. | श्वसन | सजीवों को जीवित रहने के लिए श्वसन की आवश्यकता होती है। | श्वसन की आवश्यकता नहीं होती है। |
7. | उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया | सजीव उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करते है। | निर्जीव उद्दीपन के प्रति कोई अनुक्रिया नहीं करते है। |
8. | गति | सजीव के शरीर में गति पायी जाती है। | निर्जीव में कोई गति नहीं पायी जाती। |
9. | उपापचय क्रियाएँ | सजीवों में विभिन्न उपापचय क्रियाएँ पायी जाती है। | निर्जीवों में कोई उपापचयी क्रिया नहीं पायी जाती है। |
10. | मृत्यु | सजीवों की मृत्यु निश्चित है। बस जीवन काल अलग-अलग हो सकता है। | जीवन काल निश्चित नहीं। मृत्यु नहीं होती। |