Chakkar Chapplon Ka | चक्कर चप्पलों का
कक्षा 3 की कहानी चक्कर चप्पलों का Chakkar Chapplon Ka यहाँ दी जा रही है जिसे आप पढ़ने का लुफ्त उठा सकते हैं।
Chakkar Chapplon Ka चक्कर चप्पलों का
मेरी चप्पल पुरानी पड़ गई थी। इन पुरानी चप्पलों ने मुझे बहुत ही परेशान कर रखा था। यह कई बार रास्ते में चलते-चलते टूट चुकी थी, बार बार मोची से मरम्मत करवा चूका था, मोची भी इनसे परेशान था।
वह 1 दिन बोला बाबूजी क्यों पैसे बर्बाद करते हो। अब तो छुट्टी कीजिए इनकी, मैं मोची से कहता बस अबकी बार इन्हें ठीक कर दो फिर नहीं लाऊंगा। लेकिन चप्पलों को तो बार बार टूटना था। नई खरीदने के लिए जेब में पैसे नहीं थे। मैं फिर मोची की दुकान पर जाता तो वह मुझे देखते ही वह हंस पड़ता और कहता आ गए बाबूजी, लाइए पहले आप की चप्पलों का इलाज कर दूँ।
मुझे तब ऐसा लगता है जैसे डॉक्टर किसी मरते हुए मरीज को इंजेक्शन देकर जिन्दा रख रहा है, रोज-रोज की परेशानी से मैं भी तंग आ गया। आखिर एक दिन नए जूते ले ही आया। अब चप्पलों से मुझे क्या काम था, सोचा चप्पलों को घर के बाहर नाली के किनारे रख देता हूँ। जब किसी को जरुरत होगी तो वो ले जाएगा।
लेकिन सुबह सफाई करने वाला आया और झाड़ू लगाते समय उसने मेरी चप्पल बाहर देखी तो वह उन्हें उठा लाया और आवाज लगाई बाबूजी आप भी खूब हैं, अपनी चप्पलों को इधर-उधर रख देते हैं, उन्हें संभालिए मैं उससे क्या चुपचाप ले ली और मन ही मन कहने लगा चप्पल को बाहर रख कर आया था। यह घर में फिर आ गई। यह मेरा साथ ही नहीं छोड़ती।
बहुत सोच विचार के बाद चप्पलों को अखबार के कागज में लपेट और डोरा बांधा चप्पलों के बण्डल को अपने साथ लेकर घूमने निकल गया, उन्हें चौराहे के बीच रखकर वापस लौट आया। हमारे छोटे साहब बाहर खेल रहे थे। उनकी नजर पड़ गई और जब अखबार पर मेरा नाम देखा तो उठा लाए और बोले पिताजी संभालो अपनी चप्पल। शायद कोई कुत्ता ले गया था। चौराहे से लाया हूँ। मैंने यह सब सुना तो लगा कि जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो तो बंडल को रखवा दिया।
घूमने निकला तो उसे अपने साथ ले गया और एक नीम के पेड़ के ऊपर रख दिया। जब मैं पेड़ से उतर ही रहा था कि कजोड़मल जी मिल गए वह बोले लाल जी यहाँ क्या कर रहे हैं। मैंने कहा कुछ नहीं बस एक दातुन तोड़ने चढ़ा था। वह चले गए मैंने सोचा चलो अब तो छुटकारा मिला।
दूसरे दिन कजोड़मल जी घर पर आ गए। उनके हाथ में चप्पलों का बण्डल था। मुझे देखते ही बोले लाल जी तुम भी खूब भुलक्कड़ हो कल दातुन तो तोड़ लाए पर चप्पलों का बण्डल पेड़ पर ही छोड़ दिया। यह तो मैंने था जो इन्हें ले आया दूसरा को होता तो पार कर जाता। मैंने चुपचाप चप्पलों का बण्डल ले लिया और उन्हें धन्यवाद दिया। चाय पिला कर उन्हें विदा किया और सोचने लगा यह चप्पल तो पीछा ही नहीं छोड़ रही है।
पहले मैं इन्हें नहीं छोड़ रहा था परन्तु अब यह मुझे नहीं छोड़ना चाहती है। मैंने सोचा क्यों न इनको कहीं गद्दा खोदकर गाड़ दूँ। ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी। न कोई इनको देखेगा और न कोई इनको यहाँ लाएगा।
दूसरे दिन शाम को घर से दूर गया गहरा गड्डा खोदकर बण्डल को जमीन में गाड़ आया। पर वाह री किस्मत चप्पलों को गाड़ कर आया ही था और चाय पि रहा था कि देखा मेरा पालतू कुत्ता मोती चप्पलों को मुँह में दबाए चला आ रहा था। बड़ी समझदारी से उसने चप्पल मेरे सामने रख दी। कभी दम हिलता तो कभी जमीन पर लोट कर करतब करता। जैसे कह रहा हो लाओ मेरा इनाम। पर मैं उसे क्या कहता अपना माथा ठोकता रहा वाह री चप्पल।